why navaratri special ?
हिंदू धर्म के अनुसार वर्ष में चार नवरात्रि होती है। इनमें प्रमुख है चैत्र व आश्विन नवरात्रि। इनके अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी होती है लेकिन आम जनमानस केवल इन दो नवरात्रियों के बारे में ही जानता है। चैत्र व आश्विन मास में आने वाली इन दोनों नवरात्रियों के बीच कुछ समानताएं हैं जो इस प्रकार हैं-
ऋतुविज्ञान के अनुसार ये दोनों मास (चैत्र व आश्विन) गर्मी और सर्दी की संधि के महत्वपूर्ण मास हैं। शीत का आगमन आश्विन से प्रारंभ हो जाता है और ग्रीष्म का चैत्र से। ऋतुमूलक बासंती संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से और नक्षत्र मूलक शारदीय नव वर्ष आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ हो जाता है। उक्त दोनों संवत्सरों के प्रारंभिक नौ दिन नवरात्र नाम से प्रसिद्ध हैं।
नव शब्द नवीन अर्थक और नौ संख्या का वाचक है। अत: नूतन संवत्सर के प्रारंभिक दिन होने के कारण उक्त दिनों को नव कहना सुसंगत है तथा दुर्गाओं की संख्या भी नौ होने से नौ दिन तक उपासना होती है। कृषि प्रधान देश भारत में फसलों की दृष्टि से भी आश्विन और चैत्र मास का विशेष महत्व है। चैत्र में आषाढ़ी फसल अर्थात गेहूं, जौं आदि और आश्विन में श्रावणी फसल धान तैयार होकर घरों में आने लगते हैं। अत: इन दोनों अवसरों पर नौ दिनों तक माता की आराधना की जाती है।
Chaitra Navratri -2011 |
ऋतुविज्ञान के अनुसार ये दोनों मास (चैत्र व आश्विन) गर्मी और सर्दी की संधि के महत्वपूर्ण मास हैं। शीत का आगमन आश्विन से प्रारंभ हो जाता है और ग्रीष्म का चैत्र से। ऋतुमूलक बासंती संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से और नक्षत्र मूलक शारदीय नव वर्ष आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ हो जाता है। उक्त दोनों संवत्सरों के प्रारंभिक नौ दिन नवरात्र नाम से प्रसिद्ध हैं।
नव शब्द नवीन अर्थक और नौ संख्या का वाचक है। अत: नूतन संवत्सर के प्रारंभिक दिन होने के कारण उक्त दिनों को नव कहना सुसंगत है तथा दुर्गाओं की संख्या भी नौ होने से नौ दिन तक उपासना होती है। कृषि प्रधान देश भारत में फसलों की दृष्टि से भी आश्विन और चैत्र मास का विशेष महत्व है। चैत्र में आषाढ़ी फसल अर्थात गेहूं, जौं आदि और आश्विन में श्रावणी फसल धान तैयार होकर घरों में आने लगते हैं। अत: इन दोनों अवसरों पर नौ दिनों तक माता की आराधना की जाती है।
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