Maharshi Vyas Jayanti Mela (Guru Purnima Importance)
गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर: ।
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम: ।।
उपरोक्त पंक्तियां व्यक्ति के जीवन में गुरुओं के महत्व को पूर्णत: व्यक्त करती है. आषाढ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा कहलाती है(Poornima of Ashadh month, Shukla Paksha is called Guru Poornima or Vyas Poornima). प्राचीन काल में विद्धार्थी जब गुरुकुलों में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करते थे. उस समय से इस पर्व को इस दिन मनाने की परम्परा चली आ रही है. इस दिन अपने गुरुओं का पूजन किया जाता है. उन्हें विशेष सम्मान देते हुए, उनका आदर-सत्कार किया जाता है. वर्ष 2011 में यह पर्व 15 जुलाई के दिन मनाया जायेगा.
इस दिन व्यक्ति को प्रात:काल स्नानादि नित्य कर्मो से निवृ्त होकर ग्रुरु के पास जाना चाहिए. तथा उन्हें उच्चासन पर बैठाकर उनका सम्मान करना चाहिए. यथाशक्ति द्रव्य, फल, पुष्प, वस्त्र आदि दान करना चाहिए. इस प्रकार गुरु का पूजन करने से व्यक्ति को विद्धा की प्राप्ति होती है.
भारत के प्राचीन और पारम्परिक देश है. हमारे यहां पर देवों से पहले गुरुओं का पूजन करने की प्राचीन परम्परा है. गुरु पूर्णिमा के दिन प्रधान गुरुओं की प्रतिष्ठा की जाती है. गुरु को गुरु दक्षिणा देकर उनका आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है.
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाता है. इस अवसर के विषय पर व्यासो नारायन यानि ईश्वर का ही एक रुप जगतगुरु है. ऎसे में गुरु पूजा को व्यास पूजा दिवस भी कहा जाता है. जीवन में ज्ञान व सदमार्ग पर चलने के लियिए गुरु का होना नितांत आवश्यक माना गया है.
गुरु पूर्णिमा पर्व उत्सव
गुरु पूर्णिमा के दिन महर्षि व्यास का जन्म दिवस पूरे भारत में बडी धूमधाम से मनाया जाता है(The birthday of Guru Vyas is celebrated on Guru Poornima with great enthusiasm in all over India). इस दिन गुरुओं के आशिर्वाद प्राप्त करने, दर्शन -पूजन और सेवा करना अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. गुरु का आशिर्वाद लेने से शिष्य का आध्यात्मिक मार्ग प्रशस्त होता है.
गुरु और शिष्य का सम्बन्ध विषुद्ध रूप से आध्यात्मिक संबंध होता है, जिसमें दोनो की उम्र से कोई अन्तर नहीं पड़ता. गुरु और शिष्य का यह सम्बन्ध भक्ति और साधना की परिपक्वता और प्रौढ़ता पर आधारित होता है. शिष्य में सदा यह भावना काम करती है कि गुरु की कृपा से मेरा आध्यात्मिक विकास हो और कृपा के अक्षय भंडार गुरु में तो सदा यह कृपापूर्ण भाव रहता ही है कि मेरे इस शिष्य का आत्मिक कल्याण हो जाए.
गुरुपूजा का दिन गुरु और शिष्य के मध्य ऐसे आध्यात्मिक संबंध को वन्दन करने का दिन है. यदि जगत् में सद्गुरु ने शिष्यों को उनके मनुष्य होने का महत्व तथा उन्हें अपने अन्तस्थ आत्मा को अनुभव कराने का उपाय न बतलाया होता तो अपनी अन्तरात्मा के दर्शन ही नहीं होते.
गुरु पूर्णिमा पर कृ्षि महत्व
गुरु पूर्णिमा यानि व्यास पूर्णिमा के दिन प्रकृ्ति की वायु परीक्षा की जाती है. यह परीक्षा माँनसून के दौरान कृ्षि और बागवानी कार्यो में महत्वपूर्ण सिद्ध होती है. व्यास पूर्णिमा के दिन को वायु परिक्षण के लिये शुभ माना जाता है. इस दिन माँनसून परीक्षा कर आने वाली फसल का पूर्वानुमान लगाया जाता है. और अगले चार माहों में सूखा या बाढ आने की स्थिति का पूर्वानुमान लगाया जाता है. भारत प्राचीन काल से ही कृषि प्रधान देश है. ऎसे में इस दिन की महत्वता और भी बढ जाती है.
महर्षि व्यास जयन्ती मेला
महर्षि व्यास ने महान ग्रन्थ महाभारत की रचना की थी(Maharshi Vyas wrote the great Scriptue "Mahabharata"). महाशास्त्र महाभारत के अलावा उन्होने अट्ठारह पुराण, श्री मदभागवत, ब्रह्मासूत्र, मीमांसा आदि जैसे महान ग्रन्थों की रचना कि थी. महर्षि व्यास ज्योतिष के पितामह ऋषि पराशर के पुत्र थे. "श्रीमदभागवत गीता" महाभारत का ही एक भाग है. इस दिन देश के कई भागों में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मेला लगता है.
गुरु पूर्णिमा महिमा
अपने गुणों व अपनी योग्यताके कारण गुरु को ईश्वर से भी उंचा स्थान दिया गया है(In India, teachers are considered even higher then God). ईश्वर के अनेक रुपों से ऊपर बी गुरु को ही माना गया है. गुरु को ब्रह्मा कहा गया है. गुरु अपने शिष्य को नया जन्म देता है. गुरु ही साक्षात महादेव है, क्योकि वे अपने शिष्यों के सभी दोषों को माफ करते है.
भारत में गुरुओं को न केवल आध्यात्मिक महत्व दिया गया है, बल्कि उनका महत्व धार्मिक और राजनैतिक विषयों में भी सदा से ही बना रहा है. यहां पर गुरुओं ने देश को संकट के समय में अपने मार्गदर्शन से नया रास्ता दिखाया है. गुरु केवल एक शिक्षक ही नहीं है, अपितु वह व्यक्ति को जीवन के हर संकट से बाहर निकलने का मार्ग बताने वाला मार्गदर्शक भी है.
गुरु व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश में ले जाने का कार्य करता है, सरल शब्दों में गुरु को ज्ञान का पुंज कहा जा सकता है.
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