चाणक्य निति सूत्र
सपष्ट वादी धोखेबाज़ नहीं होता
नि:सप्र्हानाधिकारी स्यान्ताकामी मंदंप्रिय :
नाविदग्ध: प्रिय : ब्रूयात सपष्ट वक्ता न वचनक
अर्थ : जिसका जिस वस्तु से लगाव नहीं है, उस वस्तु का वेह अधिकारी नहीं है
यदि कोई व्यक्ति सौन्दर्य प्रेमी नहीं होगा तो श्रृंगार शोभा के प्रति उसकी आसक्ति नहीं होगी
मुर्ख व्यक्ति प्रिय और मधुर वचन नहीं बोल पता और सपष्ट वक्ता कभी धोखे बाज़ , धूर्त या मकार नहीं साफ़ साफ़ बोलने वाला कड़वा जरुर होता है , पर धोखे बाज़ नहीं.
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