श्री गणेश सभी देवताओं में सर्वप्रथम
पूजनीय कैसे बने?, क्यों होती हैं
सर्व प्रथन गणेश जी की पूजा, सर्वप्रथम गणेश पूजन क्यों किया
जाता हैं, शुभ कार्यों में गणेश जी का पूजन क्यों होता हैं,
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હોતા હૈં|, ગણેશજી કો દુર્વા-દલ ચઢ઼્આને કા મંત્ર, ગણેશ પૂજન ગણેશ કે ચમત્કારી
મન્ત્ર,ગણેશ કે કલ્યાણકારી મન્ત્ર, ગણેશ પૂજન ગ્રહપીડા દૂર હોતી હૈં|, ગણેશ યન્ત્ર, ગણેશ યંત્ર, ગણેશ યંત્ર, ગણેશ યંત્ર (સંપૂર્ણ
બીજ મંત્ર સહિત), ગણેશ સિદ્ધ યંત્ર, લક્ષ્મી ગણેશ યંત્ર, એકાક્ષર ગણપતિ યંત્ર, હરિદ્રા ગણેશ યંત્ર, સ્ફટિક ગણેશ, મંગલ ગણેશ, પારદ ગણેશ, પન્ન ગણેશ, ગણેશ રુદ્રાક્ષ, 19- How to Shree
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श्री गणेश सभी देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय कैसे बने?
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (सितम्बर-2012)
भारतीय संस्कृति
में प्रत्येक शुभकार्य करने के पूर्व भगवान श्री गणेश जी की पूजा की जाती हैं इसी लिये
ये किसी भी कार्य का शुभारंभ करने से पूर्व कार्य का "श्री गणेश करना" कहा
जाता हैं। एवं प्रत्यक शुभ कार्य या अनुष्ठान करने के पूर्व ‘‘श्री गणेशाय नमः” का उच्चारण किया जाता हैं। गणेश को समस्त सिद्धियों को देने वाला माना गया है। सारी सिद्धियाँ गणेश में वास करती हैं।
इसके पीछे मुख्य कारण हैं की भगवान श्री गणेश समस्त विघ्नों को टालने वाले हैं, दया एवं कृपा के अति सुंदर महासागर हैं, एवं तीनो लोक के कल्याण हेतु भगवान गणपति सब प्रकार से योग्य हैं। समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले गणेश विनायक हैं। गणेशजी विद्या-बुद्धि के अथाह सागर एवं विधाता हैं।
भगवान गणेश को सर्व प्रथम पूजे जाने के विषय
में कुछ विशेष लोक कथा प्रचलित हैं। इन विशेष एवं लोकप्रिय कथाओं का वर्णन यहा कर
रहें हैं।
इस के संदर्भ में एक कथा है कि महर्षि वेद व्यास ने महाभारत को से बोलकर लिखवाया था, जिसे स्वयं गणेशजी ने लिखा था। अन्य कोई भी इस ग्रंथ को तीव्रता से लिखने में समर्थ नहीं था।
सर्वप्रथम कौन पूजनीय हो?
कथा इस प्रकार हैं : तीनो लोक में सर्वप्रथम कौन पूजनीय हो?, इस बात को लेकर समस्त देवताओं में विवाद खडा हो गया। जब इस विवादने बडा रुप धारण कर लिये तब सभी देवता अपने-अपने बल बुद्धिअ के बल पर दावे प्रस्तुत करने
लगे। कोई परीणाम नहीं आता देख सब देवताओं ने निर्णय लिया कि चलकर भगवान श्री विष्णु
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सभी देव गण विष्णु लोक मे उपस्थित हो गये, भगवान विष्णु ने इस मुद्दे को गंभीर होते देख श्री विष्णु ने सभी
देवताओं को अपने साथ लेकर शिवलोक में पहुच गये। शिवजी ने कहा इसका सही निदान सृष्टिकर्ता
ब्रह्माजी हि बताएंगे। शिवजी श्री विष्णु एवं अन्य देवताओं के साथ मिलकर ब्रह्मलोक
पहुचें और ब्रह्माजी ……>> Read Full Article In
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समस्त देवता ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने के लिए अपने अपने वाहनों पर सवार होकर निकल पड़े। लेकिन, गणेशजी का वाहन मूषक था। भला मूषक पर सवार हो गणेश कैसे ब्रह्माण्ड के तीन चक्कर लगाकर सर्वप्रथम लौटकर सफल होते। लेकिन गणपति परम विद्या-बुद्धिमान
एवं चतुर थे।
गणपति ने अपने वाहन मूषक पर सवार हो कर अपने माता-पित
कि तीन प्रदक्षिणा पूरी की और जा पहुँचे निर्णायक ब्रह्माजी के पास। ब्रह्माजी ने जब पूछा कि वे क्यों नहीं गए ब्रह्माण्ड के चक्कर पूरे करने, तो गजाननजी ने जवाब दिया कि माता-पित
में तीनों लोक, समस्त ब्रह्माण्ड, समस्त तीर्थ, समस्त देव और समस्त पुण्य विद्यमान होते हैं।
अतः जब मैंने अपने माता-पित की परिक्रमा पूरी कर ली, तो इसका तात्पर्य है कि मैंने पूरे ब्रह्माण्ड की प्रदक्षिणा पूरी कर ली। उनकी यह तर्कसंगत युक्ति स्वीकार कर ली गई और इस तरह वे सभी लोक में सर्वमान्य 'सर्वप्रथम पूज्य' माने गए।
लिंगपुराण
के अनुसार (105। 15-27) – एक बार असुरों से त्रस्त
देवतागणों द्वारा की गई प्रार्थना से भगवान शिव ने सुर-समुदाय को अभिष्ट वर देकर आश्वस्त
किया। कुछ ही समय के पश्चात तीनो लोक के देवाधिदेव महादेव भगवान शिव का माता पार्वती
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जन्म की कथा भी बड़ी रोचक है।
गणेशजी
की पौराणिक कथा
भगवान
शिव कि अन उपस्थिति में माता पार्वती ने विचार
किया कि उनका स्वयं का एक सेवक होना चाहिये, जो परम शुभ, कार्यकुशल तथा
उनकी आज्ञा का सतत पालन करने में कभी विचलित न हो। इस प्रकार सोचकर माता पार्वती नें अपने मंगलमय ……>> Read Full Article In
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इसी दौरान भगवान
शिव उधर आ जाते हैं। गणेशजी शिवजी को रोक कर कहते हैं कि आप उधर
नहीं जा सकते हैं। यह सुनकर भगवान शिव क्रोधित हो जाते हैं और गणेश जी को
रास्ते से हटने का कहते हैं किंतु गणेश जी अड़े रहते हैं तब
दोनों में युद्ध हो जाता है। युद्ध के दौरान क्रोधित होकर शिवजी बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर देते हैं। शिव के इस कृत्य का जब पार्वती को पता चलता है तो वे विलाप और क्रोध से प्रलय ……>> Read Full Article In
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पार्वतीजी के दुःख को देखकर शिवजी ने उपस्थित गणको आदेश देते हुवे कहा सबसे पहला जीव मिले, उसका सिर काटकर इस बालक के धड़ पर लगा दो, तो यह बालक जीवित हो उठेगा। सेवको को सबसे पहले हाथी का एक बच्चा मिला। उन्होंने उसका सिर लाकर बालक के धड़ पर लगा दिया, बालक जीवित हो उठा।
उस अवसर पर तीनो देवताओं
ने उन्हें सभी लोक में अग्रपूज्यता का वर प्रदान किया और उन्हें सर्व अध्यक्ष पद पर
विराजमान किया। स्कंद पुराण
ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार (गणपतिखण्ड) –
शिव-पार्वती के विवाह होने के बाद उनकी कोई संतान नहीं हुई, तो शिवजी ने पार्वतीजी से भगवान विष्णु के शुभफलप्रद ‘पुण्यक’ व्रत करने को कहा
पार्वती के ‘पुण्यक’ व्रत से भगवान विष्णु ने प्रसन्न हो कर पार्वतीजी को पुत्र प्राप्ति
का वरदान दिया। ‘पुण्यक’ व्रत के प्रभाव से पार्वतीजी को एक पुत्र उत्पन्न हुवा।
पुत्र जन्म कि बात
सुन कर सभी देव, ऋषि, गंधर्व आदि सब गण बालक के दर्शन हेतु पधारे। इन देव गणो में शनि महाराज भी
उपस्थित हुवे। किन्तु शनिदेव ने पत्नी द्वारा दिये गये शाप के कारण बालक का दर्शन नहीं
किया। परन्तु माता पार्वती के बार-बार कहने पर शनिदेव ……>> Read Full Article In
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इस पर भगवान् विष्णु
ने श्रेष्ठतम उपहारों से भगवान गजानन कि पूजा कि और वरदान दिया कि
सर्वाग्रे तव पूजा च मया दत्ता सुरोत्तम।
सर्वपूज्यश्च योगीन्द्रो भव वत्सेत्युवाच तम्।।
(गणपतिखं. 13। 2)
भावार्थ: ‘सुरश्रेष्ठ! मैंने
सबसे पहले तुम्हारी पूजा कि है, अतः वत्स! तुम सर्वपूज्य तथा योगीन्द्र हो जाओ।’
ब्रह्मवैवर्त पुराण में ही एक अन्य प्रसंगान्तर्गत पुत्रवत्सला पार्वती ने गणेश
महिमा का बखान करते हुए परशुराम से कहा –
त्वद्विधं
लक्षकोटिं च हन्तुं शक्तो गणेश्वरः।
जितेन्द्रियाणां
प्रवरो नहि हन्ति च मक्षिकाम्।।
तेजसा
कृष्णतुल्योऽयं कृष्णांश्च गणेश्वरः।
देवाश्चान्ये कृष्णकलाः पूजास्य पुरतस्ततः।।
(ब्रह्मवैवर्तपु., गणपतिख., 44। 26-27)
भावार्थ: जितेन्द्रिय
पुरूषों में श्रेष्ठ गणेश तुममें जैसे लाखों-करोड़ों जन्तुओं को मार डालने की शक्ति
है; परन्तु तुमने मक्खी पर भी हाथ नहीं उठाया। श्रीकृष्ण के अंश
से उत्पन्न हुआ वह गणेश तेज में श्रीकृष्ण के ही समान है। अन्य देवता श्रीकृष्ण की
कलाएँ हैं। इसीसे इसकी अग्रपूजा होती है।
शास्त्रीय मतसे
शास्त्रोमें पंचदेवों की उपासना
करने का विधान हैं।
आदित्यं
गणनाथं च देवीं रूद्रं च केशवम्।
पंचदैवतमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत्।। (शब्दकल्पद्रुम)
पंचदैवतमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत्।। (शब्दकल्पद्रुम)
भावार्थ: - पंचदेवों
कि उपासना का ब्रह्मांड के पंचभूतों के साथ संबंध है। पंचभूत पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश से
बनते हैं। और पंचभूत के आधिपत्य के कारण से आदित्य, गणनाथ(गणेश), देवी, रूद्र और केशव ये
पंचदेव भी पूजनीय हैं। हर एक तत्त्व
का हर एक देवता स्वामी हैं-
आकाशस्याधिपो
विष्णुरग्नेश्चैव महेश्वरी।
वायोः सूर्यः क्षितेरीशो जीवनस्य गणाधिपः।।
वायोः सूर्यः क्षितेरीशो जीवनस्य गणाधिपः।।
भावार्थ:- क्रम इस प्रकार हैं महाभूत अधिपति
1. क्षिति (पृथ्वी) शिव
2. अप् (जल) गणेश
3. तेज (अग्नि) शक्ति (महेश्वरी)
4. मरूत् (वायु) सूर्य (अग्नि)
5. व्योम (आकाश) विष्णु
1. क्षिति (पृथ्वी) शिव
2. अप् (जल) गणेश
3. तेज (अग्नि) शक्ति (महेश्वरी)
4. मरूत् (वायु) सूर्य (अग्नि)
5. व्योम (आकाश) विष्णु
भगवान् श्रीशिव
पृथ्वी तत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी शिवलिंग के रुप में पार्थिव-पूजा का
विधान हैं। भगवान् विष्णु के आकाश तत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी शब्दों
द्वारा स्तुति करने का विधान हैं। भगवती देवी के अग्नि तत्त्व ……>> Read Full Article In
GURUTVA JYOTISH SEP-2012
आचार्य मनु का कथन है-
“अप एच ससर्जादौ तासु बीजमवासृजत्।” (मनुस्मृति 1)
भावार्थ:
इस प्रमाण से सृष्टि के आदि में एकमात्र वर्तमान जल का अधिपति गणेश हैं।
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संपूर्ण लेख पढने के लिये कृप्या गुरुत्व ज्योतिष ई-पत्रिका सितम्बर-2012 का अंक पढें।
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में प्रकाशित किया गया हैं।
>> गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (सितम्बर-2012)
Sep-2012
ಶ್ರೀ ಗಣೇಶ ಪುಜಾ-2012, ಮೂಹುರ್ತ, ಗಣೇಶ ಪೂಜನ ಹೇತು ಶುಭ ಸಮಯ, 19-ಸಿತಮ್ಬರ-2012 ಗಣೇಶ ಪೂಜನ ಹೇತು ಮುಹೂರ್ತ, ಶ್ರೀ ಗಣಪತಿ ಪೂಜಾ ಮೂಹೂರ್ತ, ಗಣಪತಿ ಪುಜಾ-2012 ,ಸರ್ವಪ್ರಥಮ ಪೂಜನೀಯ ಶ್ರೀ ಗಣೇಶ, ಸರ್ವಪ್ರಥಮ ಪೂಜಾ ಗಣೇಶಜೀ ಕೀ?, ಗಣೇಶ ಪೂಜನ, ಸರಲ ವಿಧಿ ಸೇ ಶ್ರೀ ಗಣೇಶ ಪೂಜನ, ಗಣೇಶ ಗಾಯತ್ರೀ ಮನ್ತ್ರ, ಅನಂತ ಚತುರ್ದಶೀ ವ್ರತ ಉತ್ತಮ ಫಲದಾಯೀ ಹೋತಾ ಹೈಂ|, ಗಣೇಶಜೀ ಕೋ ದುರ್ವಾ-ದಲ ಚಢ಼್ಆನೇ ಕಾ ಮಂತ್ರ, ಗಣೇಶ ಪೂಜನ ಗಣೇಶ ಕೇ ಚಮತ್ಕಾರೀ ಮನ್ತ್ರ,ಗಣೇಶ ಕೇ ಕಲ್ಯಾಣಕಾರೀ ಮನ್ತ್ರ, ಗಣೇಶ ಪೂಜನ ಗ್ರಹಪೀಡಾ ದೂರ ಹೋತೀ ಹೈಂ|, ಗಣೇಶ ಯನ್ತ್ರ, ಗಣೇಶ ಯಂತ್ರ, ಗಣೇಶ ಯಂತ್ರ, ಗಣೇಶ ಯಂತ್ರ (ಸಂಪೂರ್ಣ ಬೀಜ ಮಂತ್ರ ಸಹಿತ), ಗಣೇಶ ಸಿದ್ಧ ಯಂತ್ರ, ಲಕ್ಷ್ಮೀ ಗಣೇಶ ಯಂತ್ರ, ಏಕಾಕ್ಷರ ಗಣಪತಿ ಯಂತ್ರ, ಹರಿದ್ರಾ ಗಣೇಶ ಯಂತ್ರ, ಸ್ಫಟಿಕ ಗಣೇಶ, ಮಂಗಲ ಗಣೇಶ, ಪಾರದ ಗಣೇಶ, ಪನ್ನ ಗಣೇಶ, ಗಣೇಶ ರುದ್ರಾಕ್ಷ, ஶ்ரீ கணேஶ புஜா-2012, மூஹுர்த, கணேஶ பூஜந ஹேது ஶுப ஸமய, 19-ஸிதம்பர-2012 கணேஶ பூஜந ஹேது முஹூர்த, ஶ்ரீ கணபதி பூஜா மூஹூர்த, கணபதி புஜா-2012 ,ஸர்வப்ரதம பூஜநீய ஶ்ரீ கணேஶ, ஸர்வப்ரதம பூஜா கணேஶஜீ கீ?, கணேஶ பூஜந, ஸரல விதி ஸே ஶ்ரீ கணேஶ பூஜந, கணேஶ காயத்ரீ மந்த்ர, அநம்த சதுர்தஶீ வ்ரத உத்தம பலதாயீ ஹோதா ஹைம்|, கணேஶஜீ கோ துர்வா-தல சடாநே கா மம்த்ர, கணேஶ பூஜந கணேஶ கே சமத்காரீ மந்த்ர,கணேஶ கே கல்யாணகாரீ மந்த்ர, கணேஶ பூஜந க்ரஹபீடா தூர ஹோதீ ஹைம்|, கணேஶ யந்த்ர, கணேஶ யம்த்ர, கணேஶ யம்த்ர, கணேஶ யம்த்ர (ஸம்பூர்ண பீஜ மம்த்ர ஸஹித), கணேஶ ஸித்த யம்த்ர, லக்ஷ்மீ கணேஶ யம்த்ர, ஏகாக்ஷர கணபதி யம்த்ர, ஹரித்ரா கணேஶ யம்த்ர, ஸ்படிக கணேஶ, மம்கல கணேஶ, பாரத கணேஶ, பந்ந கணேஶ, கணேஶ ருத்ராக்ஷ, శ్రీ కణేశ పుజా-2012, మూహుర్త, కణేశ పూజన హేతు శుప సమయ, 19-సితమ్పర-2012 కణేశ పూజన హేతు ముహూర్త, శ్రీ కణపతి పూజా మూహూర్త, కణపతి పుజా-2012 ,సర్వప్రతమ పూజనీయ శ్రీ కణేశ, సర్వప్రతమ పూజా కణేశజీ కీ?, కణేశ పూజన, సరల వితి సే శ్రీ కణేశ పూజన, కణేశ కాయత్రీ మన్త్ర, అనమ్త చతుర్తశీ వ్రత ఉత్తమ పలతాయీ హోతా హైమ్|, కణేశజీ కో తుర్వా-తల చటానే కా మమ్త్ర, కణేశ పూజన కణేశ కే చమత్కారీ మన్త్ర,కణేశ కే కల్యాణకారీ మన్త్ర, కణేశ పూజన క్రహపీటా తూర హోతీ హైమ్|, కణేశ యన్త్ర, కణేశ యమ్త్ర, కణేశ యమ్త్ర, కణేశ యమ్త్ర (సమ్పూర్ణ పీజ మమ్త్ర సహిత), కణేశ సిత్త యమ్త్ర, లక్ష్మీ కణేశ యమ్త్ర, ఏకాక్షర కణపతి యమ్త్ర, హరిత్రా కణేశ యమ్త్ర, స్పటిక కణేశ, మమ్కల కణేశ, పారత కణేశ, పన్న కణేశ, కణేశ రుత్రాక్ష, ശ്രീ കണേശ പുജാ-2012, മൂഹുര്ത, കണേശ പൂജന ഹേതു ശുപ സമയ, 19-സിതമ്പര-2012 കണേശ പൂജന ഹേതു മുഹൂര്ത, ശ്രീ കണപതി പൂജാ മൂഹൂര്ത, കണപതി പുജാ-2012 ,സര്വപ്രതമ പൂജനീയ ശ്രീ കണേശ, സര്വപ്രതമ പൂജാ കണേശജീ കീ?, കണേശ പൂജന, സരല വിതി സേ ശ്രീ കണേശ പൂജന, കണേശ കായത്രീ മന്ത്ര, അനമ്ത ചതുര്തശീ വ്രത ഉത്തമ പലതായീ ഹോതാ ഹൈമ്|, കണേശജീ കോ തുര്വാ-തല ചടാനേ കാ മമ്ത്ര, കണേശ പൂജന കണേശ കേ ചമത്കാരീ മന്ത്ര,കണേശ കേ കല്യാണകാരീ മന്ത്ര, കണേശ പൂജന ക്രഹപീടാ തൂര ഹോതീ ഹൈമ്|, കണേശ യന്ത്ര, കണേശ യമ്ത്ര, കണേശ യമ്ത്ര, കണേശ യമ്ത്ര (സമ്പൂര്ണ പീജ മമ്ത്ര സഹിത), കണേശ സിത്ത യമ്ത്ര, ലക്ഷ്മീ കണേശ യമ്ത്ര, ഏകാക്ഷര കണപതി യമ്ത്ര, ഹരിത്രാ കണേശ യമ്ത്ര, സ്പടിക കണേശ, മമ്കല കണേശ, പാരത കണേശ, പന്ന കണേശ, കണേശ രുത്രാക്ഷ, ਸ਼੍ਰੀ ਕਣੇਸ਼ ਪੁਜਾ-2012, ਮੂਹੁਰ੍ਤ, ਕਣੇਸ਼ ਪੂਜਨ ਹੇਤੁ ਸ਼ੁਪ ਸਮਯ, 19-ਸਿਤਮ੍ਪਰ-2012 ਕਣੇਸ਼ ਪੂਜਨ ਹੇਤੁ ਮੁਹੂਰ੍ਤ, ਸ਼੍ਰੀ ਕਣਪਤਿ ਪੂਜਾ ਮੂਹੂਰ੍ਤ, ਕਣਪਤਿ ਪੁਜਾ-2012 ,ਸਰ੍ਵਪ੍ਰਤਮ ਪੂਜਨੀਯ ਸ਼੍ਰੀ ਕਣੇਸ਼, ਸਰ੍ਵਪ੍ਰਤਮ ਪੂਜਾ ਕਣੇਸ਼ਜੀ ਕੀ?, ਕਣੇਸ਼ ਪੂਜਨ, ਸਰਲ ਵਿਤਿ ਸੇ ਸ਼੍ਰੀ ਕਣੇਸ਼ ਪੂਜਨ, ਕਣੇਸ਼ ਕਾਯਤ੍ਰੀ ਮਨ੍ਤ੍ਰ, ਅਨਮ੍ਤ ਚਤੁਰ੍ਤਸ਼ੀ ਵ੍ਰਤ ਉੱਤਮ ਪਲਤਾਯੀ ਹੋਤਾ ਹੈਮ੍|, ਕਣੇਸ਼ਜੀ ਕੋ ਤੁਰ੍ਵਾ-ਤਲ ਚਟਾਨੇ ਕਾ ਮਮ੍ਤ੍ਰ, ਕਣੇਸ਼ ਪੂਜਨ ਕਣੇਸ਼ ਕੇ ਚਮਤ੍ਕਾਰੀ ਮਨ੍ਤ੍ਰ,ਕਣੇਸ਼ ਕੇ ਕਲ੍ਯਾਣਕਾਰੀ ਮਨ੍ਤ੍ਰ, ਕਣੇਸ਼ ਪੂਜਨ ਕ੍ਰਹਪੀਟਾ ਤੂਰ ਹੋਤੀ ਹੈਮ੍|, ਕਣੇਸ਼ ਯਨ੍ਤ੍ਰ, ਕਣੇਸ਼ ਯਮ੍ਤ੍ਰ, ਕਣੇਸ਼ ਯਮ੍ਤ੍ਰ, ਕਣੇਸ਼ ਯਮ੍ਤ੍ਰ (ਸਮ੍ਪੂਰ੍ਣ ਪੀਜ ਮਮ੍ਤ੍ਰ ਸਹਿਤ), ਕਣੇਸ਼ ਸਿੱਤ ਯਮ੍ਤ੍ਰ, ਲਕ੍ਸ਼੍ਮੀ ਕਣੇਸ਼ ਯਮ੍ਤ੍ਰ, ਏਕਾਕ੍ਸ਼ਰ ਕਣਪਤਿ ਯਮ੍ਤ੍ਰ, ਹਰਿਤ੍ਰਾ ਕਣੇਸ਼ ਯਮ੍ਤ੍ਰ, ਸ੍ਪਟਿਕ ਕਣੇਸ਼, ਮਮ੍ਕਲ ਕਣੇਸ਼, ਪਾਰਤ ਕਣੇਸ਼, ਪੰਨ ਕਣੇਸ਼, ਕਣੇਸ਼ ਰੁਤ੍ਰਾਕ੍ਸ਼, শ্রী কণেশ পুজা-2012, মূহুর্ত, কণেশ পূজন হেতু শুপ সময, 19-সিতম্পর-2012 কণেশ পূজন হেতু মুহূর্ত, শ্রী কণপতি পূজা মূহূর্ত, কণপতি পুজা-2012 ,সর্ৱপ্রতম পূজনীয শ্রী কণেশ, সর্ৱপ্রতম পূজা কণেশজী কী?, কণেশ পূজন, সরল ৱিতি সে শ্রী কণেশ পূজন, কণেশ কাযত্রী মন্ত্র, অনম্ত চতুর্তশী ৱ্রত উত্তম পলতাযী হোতা হৈম্|, কণেশজী কো তুর্ৱা-তল চটানে কা মম্ত্র, কণেশ পূজন কণেশ কে চমত্কারী মন্ত্র,কণেশ কে কল্যাণকারী মন্ত্র, কণেশ পূজন ক্রহপীটা তূর হোতী হৈম্|, কণেশ যন্ত্র, কণেশ যম্ত্র, কণেশ যম্ত্র, কণেশ যম্ত্র (সম্পূর্ণ পীজ মম্ত্র সহিত), কণেশ সিত্ত যম্ত্র, লক্শ্মী কণেশ যম্ত্র, একাক্শর কণপতি যম্ত্র, হরিত্রা কণেশ যম্ত্র, স্পটিক কণেশ, মম্কল কণেশ, পারত কণেশ, পন্ন কণেশ, কণেশ রুত্রাক্শ, ଶ୍ରୀ କଣେଶ ପୁଜା-2012, ମୂହୁର୍ତ, କଣେଶ ପୂଜନ ହେତୁ ଶୁପ ସମଯ, 19-ସିତମ୍ପର-2012 କଣେଶ ପୂଜନ ହେତୁ ମୁହୂର୍ତ, ଶ୍ରୀ କଣପତି ପୂଜା ମୂହୂର୍ତ, କଣପତି ପୁଜା-2012 ,ସର୍ଵପ୍ରତମ ପୂଜନୀଯ ଶ୍ରୀ କଣେଶ, ସର୍ଵପ୍ରତମ ପୂଜା କଣେଶଜୀ କୀ?, କଣେଶ ପୂଜନ, ସରଲ ଵିତି ସେ ଶ୍ରୀ କଣେଶ ପୂଜନ, କଣେଶ କାଯତ୍ରୀ ମନ୍ତ୍ର, ଅନମ୍ତ ଚତୁର୍ତଶୀ ଵ୍ରତ ଉତ୍ତମ ପଲତାଯୀ ହୋତା ହୈମ୍|, କଣେଶଜୀ କୋ ତୁର୍ଵା-ତଲ ଚଟାନେ କା ମମ୍ତ୍ର, କଣେଶ ପୂଜନ କଣେଶ କେ ଚମତ୍କାରୀ ମନ୍ତ୍ର,କଣେଶ କେ କଲ୍ଯାଣକାରୀ ମନ୍ତ୍ର, କଣେଶ ପୂଜନ କ୍ରହପୀଟା ତୂର ହୋତୀ ହୈମ୍|, କଣେଶ ଯନ୍ତ୍ର, କଣେଶ ଯମ୍ତ୍ର, କଣେଶ ଯମ୍ତ୍ର, କଣେଶ ଯମ୍ତ୍ର (ସମ୍ପୂର୍ଣ ପୀଜ ମମ୍ତ୍ର ସହିତ), କଣେଶ ସିତ୍ତ ଯମ୍ତ୍ର, ଲକ୍ଶ୍ମୀ କଣେଶ ଯମ୍ତ୍ର, ଏକାକ୍ଶର କଣପତି ଯମ୍ତ୍ର, ହରିତ୍ରା କଣେଶ ଯମ୍ତ୍ର, ସ୍ପଟିକ କଣେଶ, ମମ୍କଲ କଣେଶ, ପାରତ କଣେଶ, ପନ୍ନ କଣେଶ, କଣେଶ ରୁତ୍ରାକ୍ଶ,