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Saturday, January 28, 2012

शीघ्र प्रभावी सरस्वती मंत्र

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अत्यंत सरल सरस्वती मंत्र प्रयोग

प्रतिदिन सुबह स्नान इत्यादि से निवृत होने के बाद मंत्र जप आरंभ करें। अपने सामने मां सरस्वती का यंत्र या चित्र स्थापित करें । अब चित्र या यंत्र के ऊपर श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प व अक्षत (चावल) भेंट करें और धूप-दीप जलाकर देवी की पूजा करें और अपनी मनोकामना का मन में स्मरण करके स्फटिक की माला से किसी भी सरस्वती मंत्र की शांत मन से एक माला फेरें।

सरस्वती मूल मंत्र - ॐ ऎं सरस्वत्यै ऎं नमः।

सरस्वती मंत्र - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः।



सरस्वती गायत्री मंत्र -

१ - ॐ सरस्वत्यै विधमहे, ब्रह्मपुत्रयै धीमहि । तन्नो देवी प्रचोदयात।

२ - ॐ वाग देव्यै विधमहे काम राज्या धीमहि । तन्नो सरस्वती: प्रचोदयात।



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ज्ञान वृद्धि हेतु सरस्वती मन्त्र

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विद्या प्राप्ति के लिये सरस्वती मंत्र


घंटाशूलहलानि शंखमुसले चक्रं धनुः सायकं हस्ताब्जैर्दघतीं धनान्तविलसच्छीतांशु तुल्यप्रभाम्‌।
गौरीदेहसमुद्भवा त्रिनयनामांधारभूतां महापूर्वामत्र सरस्वती मनुमजे शुम्भादि दैत्यार्दिनीम्‌॥


भावार्थ: जो अपने हस्त कमल में घंटा, त्रिशूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण को धारण करने वाली, गोरी देह से उत्पन्ना, त्रिनेत्रा, मेघास्थित चंद्रमा के समान कांति वाली, संसार की आधारभूता, शुंभादि दैत्य का नाश करने वाली महासरस्वती को हम नमस्कार करते हैं। माँ सरस्वती जो प्रधानतः जगत की उत्पत्ति और ज्ञान का संचार करती है।


उपरोक्त मंत्र को प्रतिदिन जाप करने से विद्या की प्राप्ति होती है।


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वैदिक प्रश्न ज्योतिष और शिक्षा विचार

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प्रश्न ज्योतिष से जाने विद्या प्राप्ति के योग

ज्योतिष शास्त्र में कुण्डली के पंचम भाव को महत्वपूर्ण माना जाता हैं। क्योकि पंचम भाव जातक के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं। क्योकि पंचम भाव शिक्षा, बुद्धि और ज्ञान का भाव है, जिससे जातक के जीवन की दिशा निर्धारित होती हैं। ज्योतिष में पंचम भाव को त्रिकोण स्थान भी कहा जाता हैं। पंचम भाव को ज्योतिष में बहुत ही शुभ माना गया है। जातक के शिक्षा से सम्बन्ध में भी विचार पंचम भाव से ही किया जाता हैं। इस लिए प्रश्न ज्योतिष या प्रश्न कुंडली से शिक्षाका आंकलन करने हेतु भी पंचम भाव ही प्रमुख माना गया हैं।
  • पश्न ज्योतिष में शिक्षा का आंकलन करने हेतु लग्न में स्थित ग्रह एवं लग्नेश की स्थिती, पंचम भाव में स्थित ग्रह एवं पंचमेश की स्थिती तथा शिक्षा के कारक ग्रह बुध एवं बृहस्पति की स्थिति से विद्या का आंकल किया जासकता हैं।
  • प्रश्न कुंडली में लग्न, लग्नेश, पंचम भाव, पंचमेश, बुध और बृहस्पति यदि शुभ ग्रहो के साथ हो या शुभ ग्रहो से द्रष्ट हो तो शिक्षा के संबंधित कार्यो में बड़ी सफलता अवश्य मिलती हैं।
  • प्रश्न कुंडली में लग्न, लग्नेश, पंचम भाव, पंचमेश, बुध और बृहस्पति यदि कमजोर स्थिति में हों या या अशुभ ग्रहो से युक्त या द्रष्टी के कारण पीडित हो, तो शिक्षा संबंधित कार्यो में रूकावटों का सामना करना पड सकता हैं।
  • प्रश्न कुंडली का विश्लेषण करते समय अन्य शुभ, अशुभ ग्रहों का दृष्टि या युति संबंध एवं संबंधित ग्रह के मित्र एवं शत्रु ग्रहो का उनपर प्रभाव देखना भी अति आवश्यक होता हैं।
नोट: ज्योतिष शास्त्रो के अनुशार लग्न के साथ में भाव कारक भी बदल जाते हैं। इस लिए प्रश्न कुंडली का विश्लेषण सावधानी से करना उचित रहता हैं। विद्वानो के अनुशार प्रश्न कुंडली का विश्लेषण करते समय संबंधित भाव एवं भाव के स्वामी ग्रह अर्थातः भावेश एवं भाव के कारक ग्रह को ध्यान में रखते हुए आंकलन कर किया गया विश्लेषण स्पष्ट होता हैं। प्रश्न कुंडली का फलादेश करते समय हर छोटी छोटी बातों का ख्याल रखना आवश्यक होता हैं अन्यथा विश्लेषण किये गये प्रश्न का उत्तर स्टिक नहीं होता।

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मां सरस्वती की उपासना

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स्वर, शिक्षा और सरस्वती का त्यौहार – वसंत पंचमी

वसंत ऋतु के आगमन का समाचार और विद्या की देवी सरस्वती के जन्मदिन की खुशियों को लेकर आज वंसत पंचमी का त्यौहार आया है. प्रकृति और विद्या के प्रति अपने समर्पण को दर्शाने का यह सबसे बेहतरीन मौका है. ठंडी के बाद मौसम अपने सबसे रंगीन रुप में करवट लेता है और पेड़ों पर निकली नई कोपलें इस शुभ-संकेत देती हैं. आज के दिन पितृ तर्पण और कामदेव की पूजा का भी विधान है. वसंत पंचमी को श्री पंचमी तथा ज्ञान पंचमी भी कहते हैं.

Saraswati- Vasant Panchmi
वसंत पंचमी मुख्यत: मां सरस्वती के प्रकट होने के उपक्ष्य में मनाया जाता है. धार्मिक ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि इसी दिन शब्दों की शक्ति मनुष्य की झोली में आई थी. हिंदू धर्म में देवी शक्ति के जो तीन रूप हैं -काली, लक्ष्मी और सरस्वती, इनमें से सरस्वती वाणी और अभिव्यक्ति की अधिष्ठात्री हैं. सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की. पर अपने प्रारंभिक अवस्था में मनुष्य मूक था और धरती बिलकुल शांत थी. ब्रह्माजी ने जब धरती को मूक और नीरस देखा तो अपने कमंडल से जल लेकर छिटका दिया., जिससे एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई. जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था. इस जल से हाथ में वीणा धारण किए जो शक्ति प्रगट हुई, वह सरस्वती कहलाई. उनके वीणा का तार छेड़ते ही तीनों लोकों में कंपन हो गया (यानी ऊर्जा का संचार आरंभ हुआ) और सबको शब्द और वाणी मिल गई.


सरस्वती कला, ज्ञान और विद्या की देवी है. उन्हें पवित्रता, सिद्धि, शक्ति और समृद्धि की देवी भी माना गया है. इनकी सबसे पहले पूजा श्रीकृष्ण और ब्रह्माजी ने ही की है. देवी सरस्वती ने जब श्रीकृष्ण को देखा तो उनके रूप पर मोहित हो गईं और पति के रूप में पाने की इच्छा करने लगीं. भगवान कृष्ण को इस बात का पता चलने पर उन्होंने कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित हैं. परंतु सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने वरदान दिया कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखनेवाला माघ मास की शुक्ल पंचमी को तुम्हारा पूजन करेगा. यह वरदान देने के बाद स्वयं श्रीकृष्ण ने पहले देवी की पूजा की.

देवी भागवत में उल्लेख है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द शक्ति जीव को प्राप्त हुई थी. सरस्वती प्रकृति की देवी भी हैं. वसंत पंचमी पर पीले वस्त्र पहनने, हल्दी से सरस्वती की पूजा और हल्दी का ही तिलक लगाने का विधान है. यह सब भी प्रकृति का ही श्रृंगार है. पीला रंग इस बात का भी द्योतक है कि फसलें पकने वाली हैं. पीला रंग समृद्धि का सूचक कहा गया है.

यह त्यौहार आज अपने मूल रुप से थोड़ा कमजोर नजर आता है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जीवन में विद्या के बिना कुछ भी पाना बेहद जटिल है. विद्या की देवी के पूजन के साथ आज हमें प्रकृति के प्रति अपना आभार प्रकट करना चाहिए.

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मां सरस्वती का चमत्कारी मन्त्र,


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॥ सरस्वती मंत्र ॥


या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वृस्तावता ।
या वीणा वर दण्ड मंडित करा या श्वेत पद्मसना ।।

या ब्रह्माच्युत्त शंकर: प्रभृतिर्भि देवै सदा वन्दिता ।
सा माम पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्या पहा ॥१॥

भावार्थ: जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह श्वेत वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर अपना आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती आप हमारी रक्षा करें।


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सरस्वती की आराधना

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मां सरस्वती की उपासना का पर्व
वसंत
ND
आचार्य गोविन्द बल्लभ जोशी 


माघ शुक्ल पंचमी को मनाए जाने वाले सारस्वत महोत्सव का महत्व निराला है। मां सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं तथा शास्त्र ज्ञान को देने वाली है। भगवती शारदा का मूलस्थान अमृतमय प्रकाशपुंज है। जहां से वे अपने उपासकों के लिए निरंतर पचास अक्षरों के रूप में ज्ञानामृत की धारा प्रवाहित करती हैं। उनका विग्रह शुद्ध ज्ञानमय, आनन्दमय है। उनका तेज दिव्य एवं अपरिमेय है और वे ही शब्द ब्रह्म के रूप में पूजी जाती हैं। 


सृष्टि काल में ईश्वर की इच्छा से आद्याशक्ति ने अपने को पांच भागों में विभक्त कर लिया था। वे राधा, पद्मा, सावित्री, दुर्गा और सरस्वती के रूप में प्रकट हुई थीं। उस समय श्रीकृष्ण के कण्ठ से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती हुआ। श्रीमद्देवीभागवत और श्रीदुर्गा सप्तशती में भी आद्याशक्ति द्वारा अपने आपको तीन भागों में विभक्त करने की कथा है। आद्याशक्ति के ये तीनों रूप महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के नाम से संसार में जाने जाते हैं।

भगवती सरस्वती सत्वगुणसंपन्न हैं। इनके अनेक नाम हैं, जिनमें से वाक्‌, वाणी, गिरा, भाषा, शारदा, वाचा, श्रीश्वरी, वागीश्वरी, ब्राह्मी, गौ, सोमलता, वाग्देवी और वाग्देवता आदि प्रसिद्ध हैं। ब्राह्मणग्रंथों के अनुसार वाग्देवीर ब्रह्मस्वरूपा, कामधेनु, तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि हैं। ये ही विद्या, बुद्धि और सरस्वती हैं। इस प्रकार देवी सरस्वती की पूजा एवं आराधना के लिए माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि वसंत पंचमी को ही इनका अवतरण दिवस माना जाता है। 

अतः वागीश्वरी जयंती एवं श्री पंचमी के नाम से भी इस तिथि को जाना जाता है। इस दिन इनकी विशेष अर्चा-पूजा तथा व्रतोत्सव के द्वारा इनके सांनिध्य प्राप्ति की साधना की जाती है। सरस्वती देवी की इस वार्षिक पूजा के साथ ही बालकों के अक्षरारंभ एवं विद्यारंभ की तिथियों पर भी सरस्वती पूजन का विधान है।

भगवती सरस्वती की पूजा हेतु आजकल सार्वजनिक पूजा पंडालों की रचना करके उसमें देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित करने एवं पूजन करने का प्रचलन दिखाई पड़ता है, किंतु शास्त्रों में वाग्देवी की आराधना व्यक्तिगत रूप में ही करने का विधान बतलाया गया है। 

भगवती सरस्वती के उपासक को माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को प्रातःकाल में भगवती सरस्वती की पूजा करनी चाहिए। 
इसके एक दिन पूर्व अर्थात्‌ माघ शुक्ल पूजा करनी चाहिए। इसके एक दिन पूर्व अर्थात्‌ माघ शुक्ल चतुर्थी को वागुपासक संयम, नियम का पालन करें। इसके बाद माघ शुक्ल पंचमी को प्रातःकाल उठकर घट (कलश) की स्थापना करके उसमें वाग्देवी का आह्वान करे तथा विधिपूर्वक देवी सरस्वती की पूजा करें। 

पूजन कार्य में स्वयं सक्षम न हो तो किसी ज्ञानी कर्मकांडी या कुलपुरोहित से दिशा-निर्देश से पूजन कार्य संपन्न करें।


मां
ND

भगवती सरस्वती की पूजन प्रक्रिया में सर्वप्रथम आचमन, प्राणयामादि के द्वारा अपनी बाह्यभ्यंतर शुचिता संपन्न करे। फिर सरस्वती पूजन का संकल्प ग्रहण करे। इसमें देशकाल आदि का संकीर्तन करते हुए अंत में 'यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भगवत्याः सरस्वत्याः पूजनमहं करिष्ये।' पढ़कर संकल्प जल छोड़ दें। तत्पश्चात आदि पूजा करके कलश स्थापित कर उसमें देवी सरस्वती साद आह्वान करके वैदिक या पौराणिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए उपचार सामग्रियां भगवती को सादर समर्पित करे। 


'श्री ह्यीं सरस्वत्यै स्वाहा' इस अष्टाक्षर मंत्र से प्रन्येक वस्तु क्रमशः श्रीसरस्वती को समर्पण करे। अंत में देवी सरस्वती की आरती करके उनकी स्तुति करे। स्तुति गान के अनन्तर सांगीतिक आराधना भी यथासंभव करके भगवती को निवेदित गंध पुष्प मिष्आत्रादि का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। पुस्तक और लेखनी में भी देवी सरस्वती का निवास स्थान माना जाता है तथा उसकी पूजा की जाती है।

देवी भागवत एवं ब्रह्मवैवर्तपुराण में वर्णित आख्यान में पूर्वकाल में श्रीमन्नरायण भगवान ने वाल्मीकि को सरस्वती का मंत्र बतलाया था। जिसके जप से उनमें कवित्व शक्ति उत्पन्न हुई थी। भगवान नारायण द्वारा उपदिष्ट वह अष्टाक्षर मंत्र इस प्रकार है- 'श्रीं ह्वीं सरस्वत्यै स्वाहा।' इसका चार लाख जप करने से मंत्र सिद्धि होती है। 

आगम ग्रंथों में इनके कई मंत्र निर्दिष्ट हैं, जिनमें 'अं वाग्वादिनि वद वद स्वाहा।' यह सबीज दशाक्षर मंत्र सर्वार्थसिद्धिप्रद तथा सर्वविद्याप्रदायक कहा गया है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में उनका एक मंत्र इस प्रकार है- 'ॐ ऐं ह्वीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा।' 

ऐसा उल्लेख आता है कि महर्षि व्यास जी की व्रतोपासना से प्रसन्न होकर ये उनसे कहती हैं- व्यास! तुम मेरी प्रेरणा से रचित वाल्मीकि रामायण को पढ़ो, वह मेरी शक्ति के कारण सभी काव्यों का सनातन बीज बन गया है। उसमें श्रीरामचरित के रूप में मैं साक्षात्‌ मूर्तिमती शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हूं-

पठ रामायणं व्यास काव्यबीजं सनातनम्‌। यत्र रामचरितं स्यात्‌ तदहं तत्र शक्तिमान॥

भगवती सरस्वती के इस अद्भुत विश्वविजय कवच को धारण करके ही व्यास, ऋष्यश्रृंग, भरद्वाज, देवल तथा जैगीषव्य आदि ऋषियों ने सिद्धि पाई थी। इस कवच को सर्वप्रथम रासरासेश्वर श्रीकृष्ण ने गोलोक धाम के वृंदावन नामक अरण्य में रासोत्सव के समय रासमंडल के वृंदावन नामक अरण्य में रासोत्सव के समय रासमंडल में ब्रह्माजी से कहा था। 

तत्पश्चात ब्रह्माजी ने गंधमादन पर्वतपर भृगुमुनि को इसे दिया था। भगवती सरस्वती की उपासना (काली के रूप में) करके ही कवि कुलगुरु कालिदास ने ख्याति पाई। गोस्वामी जी कहते हैं कि देवी गंगा और सरस्वती दोनों एक समान ही पवित्रकारिणी हैं। एक पापहारिणी और एक अविवेक हारिणी हैं-

पुनि बंदउं सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता।
मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका।

भगवती सरस्वती विद्या की अधिष्ठातृ देवी हैं और विद्या को सभी धनों में प्रधान धन कहा गया है। विद्या से ही अमृतपान किया जा सकता है। विद्या और बुद्धि की अधिष्ठात्‌ देवी सरस्वती की महिमा अपार है। देवी सरस्वती के द्वादश नाम हैं। जिनकी तीनों संध्याओं में इनका पाठ करने से भगवती सरस्वती उस मनुष्य की जिह्वा पर विराजमान हो जाती हैं।
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विद्या और ज्योतिषीय


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विद्या और ज्योतिषीय

हर माता-पिता की कामना होती है कि उनका बच्चें परीक्षा में उच्च अंकों से उत्तीर्ण हो एवं उसे सफलता मिले। उच्च अंकों का प्रयास तो सभी बच्चें करते हैं पर कुछ बच्चें असफल भी रह जाते हैं। कई बच्चों की समस्या होती है कि कड़ी मेहनत के बावजूद उन्हें अधिक याद नहीं रह पाता, वे कुछ जबाव भूल जाते हैं। जिस वजह से वे बच्चें परीक्षा में उच्च अंकों से उत्तीर्ण नहीं होपाते या असफल होजाते हैं। ज्योतिष के अनुशार असफलता का कारण बच्चें की जन्मकुंडली में चंद्रमा और बुध का अशुभ प्रभाव है।


चंद्रमा और बुध का संबंध विद्या से हैं, क्योकि मन-मस्तिष्क का कारक चंद्रमा है, और जब चंद्र अशुभ हो तो चंचलता लिए होता है तो मन-मस्तिष्क में स्थिरता या संतुलन नहीं रहता हैं, एवं बुध की अशुभता की वजह से बच्चें में तर्क व कुशाग्रता की कमी आती है। इस वजह से बच्चें का मन पढाई मे कम लगता हैं और अच्छे अंकों से बच्चा उत्तीर्ण नहीं हो पाता।

भारतीय ऋषि मुनिओं ने विद्या का संबंध विद्या की देवी सरस्वती से बताय हैं। तो जिस बच्चें की जन्मकुंडली में चंद्रमा और बुध का अशुभ प्रभावो हो उसे विद्या की देवी सरस्वती की कृपा भी नहीं होती। एसे मे मां सरस्वती को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त चंद्रमा और बुध ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम कर शुभता प्राप्त की जा सकती है।

मां सरस्वती को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त करने का तत्पर्य यह कतई ना समजे की सिर्फ मां की पूजा-अर्चना करने से बच्चा परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो एवं उसे सफलता मिल जायेगी क्योकि मां सरस्वती उन्हीं बच्चों की मदद करती हैं, जो बच्चे मेहनत मे विश्वास करेते और मेहनत करते हैं। बिना मेहनत से कोइ मंत्र-तंत्र-यंत्र परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने मे सहायता नहीं करता है। मंत्र-तंत्र-यंत्र के प्रयोग से एक तरह की सकारत्मक सोच उत्पन्न होती है जो बच्चें को पढाई मे उस्की स्मरण शक्ती का विकास करती हैं।


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Monday, January 9, 2012

गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका जनवरी-2012 में प्रकशित लेख


January 2012  free monthly Astrology Magazines, You can read in Monthly GURUTVA JYOTISH Magazines Astrology, Numerology, Vastu, Gems Stone, Mantra, Yantra, Tantra, Kawach & ETC Related Article absolutely free of cost. गुरुत्व ज्योतिष मासिक ई पत्रीका ज्योतिष, अंक ज्योतिष, वास्तु, रत्न, मंत्र, यंत्र, तंत्र, कवच इत्यादि प्राचिन गूढ सहस्यो एवं आध्यात्मिक ज्ञान से आपको परिचित कराती हैं। 

गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका जनवरी-2012 में प्रकशित लेख
वार्षिक राशिफल विशेष
अनुक्रम
वार्षिक राशिफल विशेष
मेष राशि वार्षिक भविष्य फल 2012
18
वृषभ राशि वार्षिक भविष्य फल 2012
24
मिथुन राशि वार्षिक भविष्य फल 2012
30
कर्क राशि वार्षिक भविष्य फल 2012
36
सिंह राशि वार्षिक भविष्य फल 2012
42
कन्या राशि वार्षिक भविष्य फल 2012
49
तुला राशि वार्षिक भविष्य फल 2012
55
वृश्चिक राशि वार्षिक भविष्य फल 2012
61
धनु राशि वार्षिक भविष्य फल 2012
67
मकर राशि वार्षिक भविष्य फल 2012
73
कुंभ राशि वार्षिक भविष्य फल 2012
79
मीन राशि वार्षिक भविष्य फल 2012
84
अन्य लेख
मकर संक्रांति पर्व
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सरस्वती जयंती (वंसत पंचमी
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विद्या प्राप्ति के विलक्षण उपाय(टोटके)  
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विद्या प्राप्ति के लिए वास्तु के उपाय
15
विद्या प्राप्ति हेतु सरस्वती कवच और यंत्र
16
वार्षिक राशिफल से संबंधित सूचना
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मंत्र सिद्ध पन्ना गणेश
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21
गणेश लक्ष्मी यंत्र
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मंत्र सिद्ध रूद्राक्ष
48
दक्षिणावर्ति शंख
48
मंत्र सिद्ध दुर्लभ सामग्री
54
भाग्य लक्ष्मी दिब्बी
60
द्वादश महा यंत्र
66
मंत्रसिद्ध स्फटिक श्री यंत्र
72
शनि तैतिसा
84
पुरुषाकार शनियंत्र 
90
नवरत्न जड़ित श्री यंत्र
91
मंत्रसिद्ध लक्ष्मी यंत्रसूचि
92
मंत्र सिद्ध दैवी यंत्र सूचि
92
सर्व कार्य सिद्धि कवच
93
जैन धर्मके विशिष्ट यंत्र
94
घंटाकर्ण महावीर सर्व सिद्धि महायंत्र
95
अमोद्य महामृत्युंजय कवच
96
राशी रत्न एवं उपरत्न 
96
शादी संबंधित समस्या
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पढा़ई संबंधित समस्या
103
सर्व रोगनाशक यंत्र/
107
मंत्र सिद्ध कवच
109
YANTRA
110
GEMS STONE
112
मंत्र सिद्ध सामग्री-               35,  60, 101, 102, 103  

स्थायी लेख
संपादकीय
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जनवरी 2012 मासिक पंचांग
97
जनवरी 2012 मासिक व्रत-पर्व-त्यौहार
99
जनवरी 2012 -विशेष योग
104
दैनिक शुभ एवं अशुभ समय ज्ञान तालिका
104
दिन-रात के चौघडिये
105
दिन-रात कि होरा - सूर्योदय से सूर्यास्त तक
106
सूचना
113
हमारा उद्देश्य
115
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 કર્ક રાશિ વાર્ષિક ભવિષ્ય ફલ 2012 , સિંહ રાશિ વાર્ષિક ભવિષ્ય ફલ 2012 , કન્યા રાશિ વાર્ષિક ભવિષ્ય ફલ 2012તુલા રાશિ વાર્ષિક ભવિષ્ય ફલ 2012 , વૃશ્ચિક રાશિ વાર્ષિક ભવિષ્ય ફલ 2012,  ધનુ રાશિ વાર્ષિક ભવિષ્ય ફલ 2012 , મકર રાશિ વાર્ષિક ભવિષ્ય ફલ 2012,  કુંભ રાશિ વાર્ષિક ભવિષ્ય ફલ 2012 , મીન રાશિ વાર્ષિક ભવિષ્ય ફલ 2012 ರಾಶೀಫಲರಾಶಿ ಭವಿಷ್ಯರಾಶಿಫಲ ವಿಶೇಷಜ್ಯೋತಿಷವರ್ಷಫಲವಾರ್ಷಿಕ ಮೇಷ ರಾಶಿಮೇಷ ರಾಶೀಮೇಷ ರಾಶಿ ವಾರ್ಷಿಕ ಭವಿಷ್ಯ ಫಲ 2012ವೃಷಭ ರಾಶಿ ವಾರ್ಷಿಕ ಭವಿಷ್ಯ ಫಲ 2012ಮಿಥುನ ರಾಶಿ ವಾರ್ಷಿಕ ಭವಿಷ್ಯ ಫಲ 2012,  ಕರ್ಕ ರಾಶಿ ವಾರ್ಷಿಕ ಭವಿಷ್ಯ ಫಲ 2012 , ಸಿಂಹ ರಾಶಿ ವಾರ್ಷಿಕ ಭವಿಷ್ಯ ಫಲ 2012 , ಕನ್ಯಾ ರಾಶಿ ವಾರ್ಷಿಕ ಭವಿಷ್ಯ ಫಲ 2012ತುಲಾ ರಾಶಿ ವಾರ್ಷಿಕ ಭವಿಷ್ಯ ಫಲ 2012 , ವೃಶ್ಚಿಕ ರಾಶಿ ವಾರ್ಷಿಕ ಭವಿಷ್ಯ ಫಲ 2012,  ಧನು ರಾಶಿ ವಾರ್ಷಿಕ ಭವಿಷ್ಯ ಫಲ 2012 , ಮಕರ ರಾಶಿ ವಾರ್ಷಿಕ ಭವಿಷ್ಯ ಫಲ 2012,  ಕುಂಭ ರಾಶಿ ವಾರ್ಷಿಕ ಭವಿಷ್ಯ ಫಲ 2012 , ಮೀನ ರಾಶಿ ವಾರ್ಷಿಕ ಭವಿಷ್ಯ ಫಲ 2012 , ராஶீபலராஶி பவிஷ்யராஶிபல விஶேஷஜ்யோதிஷவர்ஷபலவார்ஷிக மேஷ ராஶிமேஷ ராஶீமேஷ ராஶி வார்ஷிக பவிஷ்ய பல 2012வ்ருஷப ராஶி வார்ஷிக பவிஷ்ய பல 2012மிதுந ராஶி வார்ஷிக பவிஷ்ய பல 2012,  கர்க ராஶி வார்ஷிக பவிஷ்ய பல 2012 , ஸிம்ஹ ராஶி வார்ஷிக பவிஷ்ய பல 2012 , கந்யா ராஶி வார்ஷிக பவிஷ்ய பல 2012துலா ராஶி வார்ஷிக பவிஷ்ய பல 2012 , வ்ருஶ்சிக ராஶி வார்ஷிக பவிஷ்ய பல 2012,  தநு ராஶி வார்ஷிக பவிஷ்ய பல 2012 , மகர ராஶி வார்ஷிக பவிஷ்ய பல 2012,  கும்ப ராஶி வார்ஷிக பவிஷ்ய பல 2012 , மீந ராஶி வார்ஷிக பவிஷ்ய பல 2012, రాశీఫలరాశి భవిష్యరాశిఫల విశేషజ్యోతిషవర్షఫలవార్షిక మేష రాశిమేష రాశీమేష రాశి వార్షిక భవిష్య ఫల 2012వృషభ రాశి వార్షిక భవిష్య ఫల 2012మిథున రాశి వార్షిక భవిష్య ఫల 2012,  కర్క రాశి వార్షిక భవిష్య ఫల 2012 , సింహ రాశి వార్షిక భవిష్య ఫల 2012 , కన్యా రాశి వార్షిక భవిష్య ఫల 2012తులా రాశి వార్షిక భవిష్య ఫల 2012 , వృశ్చిక రాశి వార్షిక భవిష్య ఫల 2012,  ధను రాశి వార్షిక భవిష్య ఫల 2012 , మకర రాశి వార్షిక భవిష్య ఫల 2012,  కుంభ రాశి వార్షిక భవిష్య ఫల 2012 , మీన రాశి వార్షిక భవిష్య ఫల 2012, രാശീഫലരാശി ഭവിഷ്യരാശിഫല വിശേഷജ്യോതിഷവര്ഷഫലവാര്ഷിക മേഷ രാശിമേഷ രാശീമേഷ രാശി വാര്ഷിക ഭവിഷ്യ ഫല 2012വൃഷഭ രാശി വാര്ഷിക ഭവിഷ്യ ഫല 2012മിഥുന രാശി വാര്ഷിക ഭവിഷ്യ ഫല 2012,  കര്ക രാശി വാര്ഷിക ഭവിഷ്യ ഫല 2012 , സിംഹ രാശി വാര്ഷിക ഭവിഷ്യ ഫല 2012 , കന്യാ രാശി വാര്ഷിക ഭവിഷ്യ ഫല 2012തുലാ രാശി വാര്ഷിക ഭവിഷ്യ ഫല 2012 , വൃശ്ചിക രാശി വാര്ഷിക ഭവിഷ്യ ഫല 2012,  ധനു രാശി വാര്ഷിക ഭവിഷ്യ ഫല 2012 , മകര രാശി വാര്ഷിക ഭവിഷ്യ ഫല 2012,  കുംഭ രാശി വാര്ഷിക ഭവിഷ്യ ഫല 2012 , മീന രാശി വാര്ഷിക ഭവിഷ്യ ഫല 2012, ਰਾਸ਼ੀਫਲਰਾਸ਼ਿ ਭਵਿਸ਼੍ਯਰਾਸ਼ਿਫਲ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਜ੍ਯੋਤਿਸ਼ਵਰ੍ਸ਼ਫਲਵਾਰ੍ਸ਼ਿਕ ਮੇਸ਼ ਰਾਸ਼ਿਮੇਸ਼ ਰਾਸ਼ੀਮੇਸ਼ ਰਾਸ਼ਿ ਵਾਰ੍ਸ਼ਿਕ ਭਵਿਸ਼੍ਯ ਫਲ 2012ਵ੍ਰੁਸ਼ਭ ਰਾਸ਼ਿ ਵਾਰ੍ਸ਼ਿਕ ਭਵਿਸ਼੍ਯ ਫਲ 2012ਮਿਥੁਨ ਰਾਸ਼ਿ ਵਾਰ੍ਸ਼ਿਕ ਭਵਿਸ਼੍ਯ ਫਲ 2012,  ਕਰ੍ਕ ਰਾਸ਼ਿ ਵਾਰ੍ਸ਼ਿਕ ਭਵਿਸ਼੍ਯ ਫਲ 2012 , ਸਿਂਹ ਰਾਸ਼ਿ ਵਾਰ੍ਸ਼ਿਕ ਭਵਿਸ਼੍ਯ ਫਲ 2012 , ਕਨ੍ਯਾ ਰਾਸ਼ਿ ਵਾਰ੍ਸ਼ਿਕ ਭਵਿਸ਼੍ਯ ਫਲ 2012ਤੁਲਾ ਰਾਸ਼ਿ ਵਾਰ੍ਸ਼ਿਕ ਭਵਿਸ਼੍ਯ ਫਲ 2012 , ਵ੍ਰੁਸ਼੍ਚਿਕ ਰਾਸ਼ਿ ਵਾਰ੍ਸ਼ਿਕ ਭਵਿਸ਼੍ਯ ਫਲ 2012,  ਧਨੁ ਰਾਸ਼ਿ ਵਾਰ੍ਸ਼ਿਕ ਭਵਿਸ਼੍ਯ ਫਲ 2012 , ਮਕਰ ਰਾਸ਼ਿ ਵਾਰ੍ਸ਼ਿਕ ਭਵਿਸ਼੍ਯ ਫਲ 2012, 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