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GURUTVA JYOTISH
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Thursday, September 29, 2011

मां ब्रह्मचारिणी के पूजन अनंत फल कि प्राप्ति होती

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द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
नवरात्र के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं। क्योकि ब्रह्म का अर्थ हैं तप। मां ब्रह्मचारिणी तप का आचरण करने वाली भगवती हैं इसी कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया।   Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
शास्त्रो में मां ब्रह्मचारिणी को समस्त विद्याओं की ज्ञाता माना गया हैं।  शास्त्रो में ब्रह्मचारिणी देवी के स्वरूप का वर्णन पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत दिव्य दर्शाया गया हैं।    Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
मां ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र पहने  उनके दाहिने हाथ में अष्टदल कि जप माला एवं बायें हाथ में कमंडल सुशोभित रहता हैं। शक्ति स्वरुपा देवी ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए 1000 साल तक सिर्फ फल खाकर तपस्या रत रहीं और 3000 साल तक शिव कि तपस्या सिर्फ पेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर कि, उनकी इसी कठिन तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया।   Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

मंत्र:
दधानापरपद्माभ्यामक्षमालाककमण्डलम्। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।   Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

ध्यान:-
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधरांब्रह्मचारिणी शुभाम्।
गौरवर्णास्वाधिष्ठानस्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।  Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्।
पदमवंदनांपल्लवाधरांकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखींनिम्न नाभिंनितम्बनीम्।।

स्तोत्र:-
तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारणीम्। ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणींप्रणमाम्यहम्।।
नवचग्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्। धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी शांतिदामानदाब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।  Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

कवच:-  Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
त्रिपुरा मेहदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी। अर्पणासदापातुनेत्रोअधरोचकपोलो॥ पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमाहेश्वरी षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो। अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥  Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने वाले व्यक्ति को अनंत फल कि प्राप्ति होती हैं। व्यक्ति में  तप, त्याग, सदाचार, संयम जैसे सद् गुणों कि वृद्धि होती हैं।  Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH





>> गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर -2011)
OCT-2010

Wednesday, September 28, 2011

शारदीय नवरात्र व्रत से सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं

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शारदीय नवरात्र व्रत से सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर-2011)
नवरात्र को शक्ति की उपासना का महापर्व माना गया हैं। मार्कण्डेयपुराण के अनुशार देवी माहात्म्य में स्वयं मां जगदम्बा का वचन हैं-। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

शरत्काले महापूजा क्रियतेया चवार्षिकी।
तस्यांममैतन्माहात्म्यंश्रुत्वाभक्तिसमन्वित:
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तोधनधान्यसुतान्वित: 
मनुष्योमत्प्रसादेनभविष्यतिन संशय:॥ Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

अर्थातः शरद ऋतु के नवरात्रमें जब मेरी वार्षिक महापूजा होती हैं, उस काल में जो मनुष्य मेरे माहात्म्य (दुर्गासप्तशती) को भक्तिपूर्वकसुनेगा, वह मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त होकर धन-धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न हो जायेगा। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
नवरात्र में दुर्गासप्तशती को पढने या सुनने से देवी अत्यन्त प्रसन्न होती हैं एसा शास्त्रोक्त वचन हैं।  सप्तशती का पाठ उसकी मूल भाषा संस्कृत में करने पर ही पूर्ण प्रभावी होता हैं। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
व्यक्ति को श्रीदुर्गासप्तशती को भगवती दुर्गा का ही स्वरूप समझना चाहिए। पाठ करने से पूर्व श्रीदुर्गासप्तशती कि पुस्तक का इस मंत्र से पंचोपचारपूजन करेंPost By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
नमोदेव्यैमहादेव्यैशिवायैसततंनम: नम:प्रकृत्यैभद्रायैनियता:प्रणता:स्मताम्॥ 
जो व्यक्ति दुर्गासप्तशतीके मूल संस्कृत में पाठ करने में असमर्थ हों तो उस व्यक्ति को सप्तश्लोकी दुर्गा को पढने से लाभ प्राप्त होता हैं। क्योकि सात श्लोकों वाले इस स्तोत्र में श्रीदुर्गासप्तशती का सार समाया हुवा हैं।
जो व्यक्ति सप्तश्लोकी दुर्गा का भी कर सके वह केवल नर्वाण मंत्र का अधिकाधिक जप करें।
देवी के पूजन के समय इस मंत्र का जप करे।
जयन्ती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधानमोऽस्तुते॥
देवी से प्रार्थना करें-

विधेहिदेवि कल्याणंविधेहिपरमां -श्रियम्।रूपंदेहिजयंदेहियशोदेहिद्विषोजहि॥
अर्थातः हे देवि! आप मेरा कल्याण करो। मुझे श्रेष्ठ सम्पत्ति प्रदान करो। मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और मेरे काम-क्रोध इत्यादि शत्रुओं का नाश करो।

विद्वानो के मतानुशार सम्पूर्ण नवरात्रव्रत का पालन करने में जो लोगों असमर्थ हो वह नवरात्र के सात रात्री,पांच रात्री, दों रात्री और एक रात्री का व्रत करके भी विशेष लाभ प्राप्त कर सकते हैं। नवरात्र में नवदुर्गा की उपासना करने से नवग्रहों का प्रकोप स्वतः शांत हो जाता हैं।

>> गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर -2011)

OCT-2011

मां शैलपुत्री का पूजन सिद्धियां एवं उपलब्धियां प्रदान करता हैं।


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प्रथम शैलपुत्री

नवरात्र के प्रथम दिन मां के शैलपुत्री स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं। पर्वतराज (शैलराज) हिमालय के यहां पार्वती रुप में जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्री कहा जाता हैं। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
भगवती नंदी नाम के वृषभ पर सवार हैं।  माता शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं।
मां शैलपुत्री को शास्रों में तीनो लोक के समस्त वन्य जीव-जंतुओं का रक्षक माना गया हैं। इसी कारण से वन्य जीवन जीने वाली सभ्यताओं में सबसे पहले शैलपुत्री के मंदिर की स्थापना की जाती हैं जिस सें उनका निवास स्थान एवं उनके आस-पास के स्थान सुरक्षित रहे। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

मूल मंत्र:-
वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम्।  वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

ध्यान मंत्र:-
वन्दे वांछितलाभायाचन्द्रार्घकृतशेखराम्। वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्।
पूणेन्दुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटाम्बरपरिधानांरत्नकिरीठांनानालंकारभूषिता।
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधंराकातंकपोलांतुगकुचाम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितम्बनीम्। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

स्तोत्र:-
प्रथम दुर्गा त्वंहिभवसागर तारणीम्। धन ऐश्वर्य दायनींशैलपुत्रीप्रणमाम्हम्।
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन। भुक्ति मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाम्यहम्।

कवच:-
ओमकार: मेशिर: पातुमूलाधार निवासिनी। हींकारपातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी। श्रींकारपातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी। हुंकार पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत। फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
मां शैलपुत्री का मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने वाले व्यक्ति को सदा धन-धान्य से संपन्न रहता हैं। अर्थात उसे जिवन में धन एवं अन्य सुख साधनो को कमी महसुस नहीं होतीं। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
नवरात्र के प्रथम दिन की उपासना से योग साधना को प्रारंभ करने वाले योगी अपने मन से 'मूलाधार' चक्र को जाग्रत कर अपनी उर्जा शक्ति को केंद्रित करते हैं, जिससे उन्हें अनेक प्रकार कि सिद्धियां एवं उपलब्धियां प्राप्त होती हैं।


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OCT-2010

मां दुर्गा की उपासना क्यों की जाती हैं?

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लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर-2011)
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:
नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्मताम्॥
अर्थात: देवी को नमस्कार हैं, महादेवी को नमस्कार हैं। महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार हैं। प्रकृति एवं भद्रा को मेरा प्रणाम हैं। हम लोग नियमपूर्वक देवी जगदम्बा को नमस्कार करते हैं। Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


उपरोक्त मंत्र से देवी दुर्गा का स्मरण कर प्रार्थना करने मात्र से देवी प्रसन्न होकर अपने भक्तों की इच्छा पूर्ण करती हैं। समस्त देव गण जिनकी स्तुति प्राथना करते हैं। माँ दुर्गा अपने भक्तो की रक्षा कर उन पर कृपा द्रष्टी वर्षाती हैं और उसको उन्नती के शिखर पर जाने का मार्ग प्रसस्त करती हैं। इस लिये ईश्वर में श्रद्धा विश्वार रखने वाले सभी मनुष्य को देवी की शरण में जाकर देवी से निर्मल हृदय से प्रार्थना करनी चाहिये।

देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद  प्रसीद मातर्जगतोsखिलस्य।
पसीद विश्वेतरि पाहि विश्वं  त्वमीश्चरी देवी चराचरस्य।
अर्थात: शरणागत कि पीड़ा दूर करने वाली देवी आप हम पर प्रसन्न हों। संपूर्ण जगत माता प्रसन्न हों। विश्वेश्वरी देवी विश्व कि रक्षा करो। देवी  आप हि एक मात्र चराचर जगत कि अधिश्वरी हो।Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


सर्वमंगल-मांगल्ये शिवेसर्वार्थसाधिके
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि  नमोऽस्तुते॥
सृष्टिस्थिति विनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तुते॥
अर्थात: हे देवी नारायणी  आप सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरूषार्थों को सिद्ध करने वाली शरणा गतवत्सला तीन नेत्रों वाली गौरी हो, आपको नमस्कार हैं। आप सृष्टि का पालन और संहार करने वाली शक्तिभूता सनातनी देवी, आप गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणी देवी तुम्हें नमस्कार है।
इस मंत्र के जप से माँ कि शरणागती प्राप्त होती हैं। जिस्से मनुष्य के जन्म-जन्म के पापों का नाश होता है। मां जननी सृष्टि कि आदि, अंत और मध्य हैं।

देवी से प्रार्थना करें
शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे
सर्वस्यार्तिंहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते
अर्थात: शरण में आए हुए दीनों एवं पीडि़तों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सब कि पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवी आपको नमस्कार है।

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा  रूष्टा तु कामान सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां विपन्नराणां  त्वामाश्रिता हाश्रयतां प्रयान्ति।
अर्थातः देवी आप प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके है। उनको विपत्ति आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं।Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


सर्वबाधाप्रशमनं त्रेलोक्यस्याखिलेश्वरी।
एवमेव त्वया कार्यमस्यध्दैरिविनाशनम्।
अर्थातः हे सर्वेश्वरी आप तीनों लोकों कि समस्त बाधाओं को शांत करो और हमारे सभी शत्रुओं का नाश करती रहो।

Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH 
शांतिकर्मणि सर्वत्र तथा दु:स्वप्रदर्शने।
ग्रहपीडासु चोग्रासु महात्मयं शणुयात्मम।
अर्थातः सर्वत्र शांति कर्म में, बुरे स्वप्न दिखाई देने पर तथा ग्रह जनित पीड़ा उपस्थित होने पर माहात्म्य श्रवण करना चाहिए। इससे सब पीड़ाएँ शांत और दूर हो जाती हैं।
यहि कारण हैं सहस्त्रयुगों से मां भगवती जगतजननी दुर्गा की उपासना प्रति वर्ष वसंत, आश्विन एवं गुप्त नवरात्री में विशेष रुप से करने का विधान हिन्दु धर्म ग्रंथो में हैं।Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


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