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Monday, July 18, 2011

श्रावण मास में शिव पूजन का महत्व कया हैं?

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हिन्दू कैलेण्डर के बारह मासों में से सावन का महीना अपनी विशेष पहचान रखता है. इस माह में चारों ओर हरियाली छाई रहती है. ऎसा लगता है मानों प्रकृति में एक नई जान आ गई है. वेदों में मानव तथा प्रकृति का बडा़ ही गहरा संबंध बताया गया है. वेदों में लिखी बातों का अर्थ है कि बारिश में ब्राह्मण वेद पाठ तथा धर्म ग्रंथों का अध्ययन करते हैं. इन मंत्रों को पढ़ने से व्यक्ति को सुख तथा शांति मिलती है. सावन में बारिश होती है. इस बारिश में अनेक प्रकार के जीव-जंतु बाहर निकलकर आते हैं. यह सभी जन्तु विभिन्न प्रकार की आवाजें निकालते हैं. उस समय वातावरण ऎसा लगता है कि जैसे किसी ने अपना मौन व्रत तोड़कर अभी बोलना आरम्भ किया हो. 
जीव-जन्तुओं की भाषा का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि जिस प्रकार बारिश होने पर जीव-जन्तु बोलने लगते हैं उसी प्रकार व्यक्ति को सावन के महीने से शुरु होने वाले चौमासों(चार मास) में ईश्वर की भक्ति के लिए धर्म ग्रंथों का पाठ सुनना चाहिए. धर्मिक दृष्टि से समस्त प्रकृति ही शिव का रुप है. इस कारण प्रकृति की पूजा के रुप में इस माह में शिव की पूजा विशेष रुप से की जाती है. सावन के महीने में वर्षा अत्यधिक होती है. इस माह में चारों ओर जल की मात्रा अधिक होने से शिव का जलाभिषेक किया जाता है. 

शिव पूजन क्यों किया जाता है 

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से विष निकला था. इस विष को पीने के लिए शिव भगवान आगे आए और उन्होंने विषपान कर लिया. जिस माह में शिवजी ने विष पिया था वह सावन का माह था. विष पीने के बाद शिवजी के तन में ताप बढ़ गया. सभी देवी - देवताओं और शिव के भक्तों ने उनको शीतलता प्रदान की लेकिन शिवजी भगवान को शीतलता नहीं मिली. शीतलता पाने के लिए भोलेनाथ ने चन्द्रमा को अपने सिर पर धारण किया. इससे उन्हें शीतलता मिल गई. 
ऎसी मान्यता भी है कि शिवजी के विषपान से उत्पन्न ताप को शीतलता प्रदान करने के लिए मेघराज इन्द्र ने भी बहुत वर्षा की थी. इससे भगवान शिव को बहुत शांति मिली. इसी घटना के बाद सावन का महीना भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है. सारा सावन, विशेष रुप से सोमवार को, भगवान शिव को जल अर्पित किया जाता है. महाशिवरात्रि के बाद पूरे वर्ष में यह दूसरा अवसर होता है जब भग्वान शिव की पूजा बडे़ ही धूमधाम से मनाई जाती है.  

सावन माह की विशेषता 

हिन्दु धर्म के अनुसार सावन के पूरे माह में भगवान शंकर का पूजन किया जाता है. इस माह को भोलेनाथ का माह माना जाता है. भगवान शिव का माह मानने के पीछे एक पौराणिक कथा है. इस कथा के अनुसार देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से अपने शरीर का त्याग कर दिया था. अपने शरीर का त्याग करने से पूर्व देवी ने महादेव को हर जन्म में पति के रुप में पाने का प्रण किया था. 
अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमालय और रानी मैना के घर में जन्म लिया. इस जन्म में देवी पार्वती ने युवावस्था में सावन के माह में निराहार रहकर कठोर व्रत किया. यह व्रत उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किए. भगवान शिव पार्वती से प्रसन्न हुए और बाद में यह व्रत सावन के माह में विशेष रुप से रखे जाने लगे.  

शिव पूजा से भौतिक सुख साधन की प्राप्ति होती हैं?

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आशुतोष नाम में आशु का मतलब होता है – त्वरित या तुरंत और तोष यानि तृप्ति या प्रसन्नता। यह भगवान शिव का ही एक नाम है। धार्मिक आस्था है कि शिव सामान्य पूजा और उपासना से ही शीघ्र ही प्रसन्न होकर भक्त की कामना पूरी करते हैं। हिन्दू धर्म के शास्त्रों और पुराणों में शिव द्वारा मनचाहे वरदान भक्तों को देने के प्रसंग हैं। फिर चाहे वह भक्त देव हो या दानव।
यही कारण है कि इंसानी ज़िंदगी से जुड़ी सभी तकलीफों और परेशानियों को को दूर करने और इच्छाओं, कामनाओं को पूरा कने के लिए भगवान शिव की पूजा को श्रेष्ठ बताया गया है। शास्त्रों के मुताबिक शिव पूजा के लिए सावन माह, सोमवार का दिन, अष्टमी, प्रदोष और चतुर्दशी तिथि श्रेष्ठ मानी गई है।
जानते हैं इन विशेष दिनों के साथ ही भगवान शिव की नियमित भक्ति, उपासना और पूजा से आख़िर मानवीय जीवन से जुड़ी किन-किन इच्छाओं की पूर्ति होती है -
- शिव महादेव कहलाते हैं और शिव का लिंग रूप ब्रह्मांडीय, अध्यात्मिक ऊर्जा का स्त्रोत होता है। यही कारण है कि शिव लिंग पूजा हर दोष, कमी और कष्टों का नाश करती है, जिससे साहस, भरोसा और ताकत मिलती है।
- शिव परिवार गृहस्थ जीवन के लिए आदर्श है। इसलिए शिव उपासना परिवार को खुशहाल बनाती है।
- भगवान शिव वैद्यनाथ हैं। इसलिए शिव पूजा निरोग बनाती है।
- शिव का एक रूप महामृत्युंजय भी है, जो काल और रोग भय से छुटकारा देता है। खासतौर पर सावन माह में की गई शिव पूजा मृत्यु भय और बीमारियों से बचाव करती है।
- शिव पूजा खासतौर पर प्रदोष पूजा संतान सुख देती है। इसलिए शिव भक्ति हर स्त्री को संतान सुख खास तौर पर पुत्र की कामना पूरी करती है।
- भगवान शिव को कुबेर भी अपना स्वामी मानता है। इसलिए शिव उपासना अपार धन का स्वामी भी बनाती है।
- भगवान शिव की आराधना से अविवाहित कन्या या पुरूष को मनचाहा जीवनसाथी मिलता है।
- भगवान शिव बुराईयों और दुर्जनों का संहार करने वाले माने जाते हैं। यही कारण है कि शिव पूजा दोष रूपी बुराईयों के साथ प्रतिद्वंदी या विरोधियों पर जीत देती है।
- शिव आराधना मोक्ष देने वाली मानी गई है।
- शिव पूजा भाग्य के द्वार खोल देती है।
- शिव के प्रिय काल सावन माह में शिव उपासना हर इच्छा पूरी कर देती है।

शिव पूजन की सरल विधि

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सावन के माह में शिवभक्त अपनी श्रद्धा तथा भक्ति के अनुसार शिव की उपासना करते हैं. चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है. सावन माह में शिव की भक्ति के महत्व का वर्णन ऋग्वेद में किया गया है. श्रावण मास के आरम्भ से ही पूजा का आरम्भ हो जाता है. इस माह में भगवान की पूजा करने में निम्न मंत्र जाप करने चाहिए. 

1) "पंचाक्षरी मंत्र" का जाप करना चाहिए.

2) "ऊँ नम: शिवाय" मंत्र की प्रतिदिन एक माला करनी चाहिए.

3) महामृत्यंजय मंत्र की एक माला प्रतिदिन करनी चाहिए. इससे कष्टों से मुक्ति मिलती है.

इन मंत्रों के जाप से व्यक्ति रोग, भय, दुख आदि से मुक्ति पाता है. जातक दीर्घायु को पाता है. इन मंत्र जाप के साथ रुद्राभिषेक तथा अनुष्ठान आदि भी भक्तों द्वारा कराए जाते हैं. जिन व्यक्तियों के लिए सावन माह में प्रतिदिन शिव की पूजा-अर्चना करना संभव नहीं होता है उन्हें सावन माह के सभी सोमवार को पूजा अवश्य करनी चाहिए. इस पूजा का भी उतना ही फल प्राप्त होगा.

भगवान शिव की पूजा विधि 

सावन के माह में भगावन शंकर की पूजा उनके परिवार के सदस्यों सहित की जाती है. पूजा का आरम्भ भोलेनाथ के अभिषेक के साथ होता है. इस अभिषेक में जल, दूध, दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर या चीनी, गंगाजल तथा गन्ने के रसेआदि से स्नान कराया जाता है. अभिषेक कराने के बाद बेलपत्र, समीपत्र, कुशा तथा दूब आदि से शिवजी को प्रसन्न करते हैं. अंत में भांग, धतूरा तथा श्रीफल भोलेनाथ को भोग के रुप में चढा़या जाता है.

बेलपत्र का महत्व 

शिवलिंग पर बेलपत्र तथा समीपत्र चढा़ने का वर्णन पुराणों में उपलब्ध है. बेलपत्र भोलेनाथ को प्रसन्न करने के शिवलिंग पर चढा़या जाता है. एक पौराणिक कथा के अनुसार 89 हजार ऋषियों ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने का तरीका परम पिता ब्रह्मा जी से पूछा. ब्रह्मा जी ने बाताया कि भगवान शिव सौ कमल चढा़ने से जितने प्रसन्न होते हैं उतने ही वह एक नीलकमल चढा़ने से प्रसन्न हो जाते हैं.

इसी प्रकार एक हजार नील कमल के बराबर एक बेलपत्र होता है. एक हजार बेलपत्र के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है. इनके चढा़ने से भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं. शिव को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका बेलपत्र है. बेलपत्र के पीछे भी एक पौराणिक कथा का महत्व है. इस कथा के अनुसार भील नाम का एक डाकू था. यह डाकू अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटता था. एक बार सावन माह में यह डाकू राहगीरों को लूटने के उद्देश्य से जंगल में गया और एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया. एक दिन-रात पूरा बीत जाने पर भी उसे कोई शिकार नहीं मिला.

जिस पेड़ पर वह डाकू छिपा था वह बेल का पेड़ था. रात-दिन पूरा बीतने पर वह परेशान होकर बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा. पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था. जो पत्ते वह तोडकर फेंख रहा था वह अनजाने में शिवलिंग पर गिर रहे थे. लगातार बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से भगवान शिव प्रसन्न हुए और अचानक डाकू के सामने प्रकट हो गए और डाकू को वरदान माँगने को कहा. ैस दिन के बाद से बेलपत्र का महत्व और अधिक बढ़ गया.

आध्यात्मिक उन्नति हेतु उत्तम हैं सावन

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सावन मास का प्रारंभ कल यानी 16 जुलाई, शनिवार से प्रारंभ हुवा  सावन मास 13 अगस्त तक रहेगा। सावन मास को श्रावण भी कहते हैं, जिसका अर्थ है सुनना। इसलिए यह भी कहा जाता है इस महीने में सत्संग, प्रवचन व धर्मोपदेश सुनने से विशेष फल मिलता है।

यह महीना और भी कई कारणों से विशेष है क्योंकि इस दौरान भक्ति, आराधना तथा प्रकृति के कई रंग देखने को मिलते हैं। यह महीना भगवान शंकर की भक्ति के लिए विशेष माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस मास में विधि पूर्वक शिव उपासना करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। सावन में ही कई प्रमुख त्योहार जैसे- हरियाली अमावस्या, नागपंचमी तथा रक्षा बंधन आदि आते हैं।
सावन में प्रकृति अपने पूरे शबाब पर होती है इसलिए यह भी कहा जाता कि यह महीना प्रकृति को समझने व उसके निकट जाने का है। सावन की रिमझिम बारिश और प्राकृतिक वातावरण बरबस में मन में उल्लास व उमंग भर देती है। अगर यह कहा जाए कि सावन का महीना पूरी तरह से शिव तथा प्रकृति को समर्पित है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

Sunday, July 17, 2011

श्रावण मास के प्रथम सोमवार कैसे पाये शिव कृपा (पहला सोमवार सावन)

सावन का पहला सोमवार First Monday of Sawan Maas |  श्रावण माह, श्रावण मास, सावन और शिव पूजा, पुजन, पुजा, શ્રાવણ માહ, શ્રાવણ માસ, સાવન ઔર શિવ પૂજા, પુજન, પુજા, ಶ್ರಾವಣ ಮಾಹ, ಶ್ರಾವಣ ಮಾಸ, ಸಾವನ ಔರ ಶಿವ ಪೂಜಾ, ಪುಜನ, ಪುಜಾ, ஶ்ராவண மாஹ, ஶ்ராவண மாஸ, ஸாவந ஔர ஶிவ பூஜா, புஜந, புஜா, శ్రావణ మాహ, శ్రావణ మాస, సావన ఔర శివ పూజా, పుజన, పుజా, ശ്രാവണ മാഹ, ശ്രാവണ മാസ, സാവന ഔര ശിവ പൂജാ, പുജന, പുജാ, ਸ਼੍ਰਾਵਣ ਮਾਹ, ਸ਼੍ਰਾਵਣ ਮਾਸ, ਸਾਵਨ ਔਰ ਸ਼ਿਵ ਪੂਜਾ, ਪੁਜਨ, ਪੁਜਾ, শ্রাৱণ মাহ, শ্রাৱণ মাস, সাৱন ঔর শিৱ পূজা, পুজন, পুজা, ଶ୍ରାବଣ ମାହ, ଶ୍ରାବଣ ମାସ, ସାବନ ଔର ଶିବ ପୂଜା, ଶିଵ ପୁଜନ, ପୁଜା, SrAvaNa mAha, SrAvaNa mAsa, sAvana aura Siva pUjA, pujana, pujA, Kanwar Yatra | Importance of Baidyanath Dham in Sawan

सावन माह व्यक्ति को कई प्रकार के संदेश देता है. सावन के माह में आसमान पर हर समय काली घटाएँ छाई रहती हैं. यह घटाएँ जब बरसती है तब गरमी से मनुष्य को राह्त मिलती है. यह माह हमें जीवन की मुश्किल परिस्थितियों से जूझने का संदेश देता है. बारिश से वातावरण में नई चेतना जागृत होती है. जगह-जगह नई कोंपले फूटनी आरम्भ होती है. पेड़-पौधे हँसते हुए मानव को संदेश देते है कि वह भी प्रतिकूल परिस्थितियों में जीना सीख लें.
सावन माह का पहला सोमवार अधिक महत्व रखता है. सोमवार के व्रत तीन प्रकार से रखे जाते हैं. सोमवार के व्रत, सोलह सोमवार तथा प्रदोष व्रत. इन तीनों व्रत में से जो भी व्रत रखना हो उसकी शुरुआत सावन माह के सोमवार से करनी चाहिए. सावन के पहले सोमवार के दिन सभी शिवालयों में भक्तों का ताँता सुबह से ही लगना आरम्भ हो जाता है. धार्मिक मतानुसार इस दिन भगवान शिव की भक्ति तथा उपासना करने से व्यक्ति को लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.

इस दिन परिवार के वरिष्ठ सदस्य अथवा मुख्य व्यक्ति को सुबह स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ आसन ग्रहण करना चाहिए. आसन पर वह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठे. लकडी़ की चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर शिवलिंग की पूजा करें. "ऊँ नम: शिवाय" का जाप करते हुए शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए. जल में कच्चा दूध मिलाकर शिवलिंग पर चढा़ना चाहिए. ऊँ नम: शिवाय का जाप रुद्राक्ष की माला से 108 बार करना चाहिए.     

सावन में काँवर यात्रा

सावन का माह आरम्भ होने से पूर्व ही भक्तजन गेरुए रंग के वस्त्र धारण कर गंगा जल काँवर में भरकर लाने की तैयारी आरम्भ कर देते हैं. कितना ही लम्बा सफर हो लेकिन अपनी भक्ति तथा श्रद्धा के बल पर यह उसे पूरा कर ही लेते हैं. हर उम्र के व्यक्ति जल भरकर लाने के लिए उत्सुक रहते हैं. जात-पांत की परवाह किए बिना यह समूहों में यात्रा करना आरम्भ करते हैं. वैद्यनाथ धाम में कांवरिए 105 कि.मी. की पैदल यात्रा करते हुए काँवर भरकर लाते हैं. हरिद्वार से काँवड़ में जल भरकर लाने वालों की संख्या अन्य स्थानों से बहुत अधिक होती है. यहाँ से लोग सभी स्थानों से आते हैं. हरियाणा, पंजाब तथा दिल्ली से काँवरियों की भीड़ लगी होती है. गाँवों से भी हजारों की संख्या में काँवरिए जल भरकर लाते हैं.

इन काँवरियों की सेवा के लिए जगह-जगह पर विश्राम शिविर लगाए जाते हैं. यहाँ कांवरिए विश्राम करने के बाद आगे बढ़ते हैं. विश्राम शिविरों में काँवरियों के लिए बडी़ संख्या में सेवादार होते हैं. लंगर तथा प्रसाद बनाने के लिए हलवाई का इन्तजाम होता है. चिकित्सा के सभी प्राथमिक वस्तुएँ इन शिविरों में उपलब्ध होती है. काँवरियों की सेवा के लिए लोगों ने समितियाँ भी बनाकर रखी है. हरिद्वार से जुड़ने वाले हर राजमार्ग पर काँवरियों का आना-जाना लगा रहता है. रास्ते में "बम-बम" की गूँज सुनाई देती रहती है. शिवपुराण में वर्णन मिलता है कि सावन मास में शिवलिंग पर जल चढा़ने से विशेष रुप से पुण्य मिलता है.  

शिव मंत्र के जप से प्राप्त होती सुख-समृद्धि हैं

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शास्त्रों के मुताबिक पूरा संसार ही शिवमय है। शिव जन्म, जीवन व मृत्यु के नियंत्रक माने गए हैं। इसलिए शिव न केवल सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने वाले देवता के रूप में पूजनीय है, बल्कि दोष और दुष्ट प्रवृत्तियों के नाशक और संहारक भी माने जाते हैं।
शिव का भोलापान व उदारता कल्याणकारी मानी गई है। जिससे वह भोलेभण्डारी के रूप में पूजनीय है। वहीं महामृत्युजंय रूप काल भय से मुक्त कर सुख, समृद्धि और शांति देता है। इस तरह शिव का सुबह से लेकर रात्रि तक किसी भी रूप में स्मरण सुखदायी है।
व्यावहारिक जीवन में अगर दिन या कार्य की शुरुआत अच्छी हो तो उससे मिली सकारात्मक ऊर्जा व भाव पूरे दिन या काम को सफल और सुखद बना देते हैं। इसलिए सुबह शिव का नाम समर्पण भाव से लिया जाए तो पूरा दिन बहुत ही शुभ और मंगलकारी बीतता है।
यहां बताया जा रहा शिव ध्यान शिव मानस पूजा का ही चरण है। जिसे सुबह शिव को बगैर पूजा सामग्रियों के अर्पण के भी ध्यान करें तो पूरी शिव उपासना का फल और मनोरथ सिद्धि देने वाला बताया गया है। फिर भी शिव को कम से कम जल और बिल्वपत्र चढ़ाकर शिव का ध्यान उपासना का श्रेष्ठ तरीका होगा -
जानते हैं यह विशेष शिव ध्यान -
आत्मा त्वं गिरिजा मति: सहचरा: प्राणा: शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थिति:।
सञ्चार: पदयो: प्रदक्षिणविधि: स्त्रोत्राणि सर्वा गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्।।
सरल शब्दों में सार समझें तो इस श्लोक में शिव के प्रति अगाध भक्ति और सर्मपण भाव है। जिसमें इंसान के शरीर, विचार, व्यवहार, बुद्धि और जीवन की सारी क्रियाओं को शिव, पार्वती से लेकर शिवालय का स्वरूप बताकर सभी कर्मों को भी शिव आराधना ही बताया गया है।
शिव के प्रति इस भाव से दिन और कार्य की शुरुआत इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास को मजबूत बनाकर पूरा दिन और हर कार्य को सुनिश्चित रूप से सफल और मंगलकारी बना देती है

सावन में विशेष फलदायी होती है शिव पूजा


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शिव की सत्ता में विश्वास करने वाले शैव ग्रंथों में भगवान शिव सृष्टि की रचना, पालन और विनाशक शक्तियों के स्वामी हैं। यही कारण है कि शिव आराधना किसी भी वक्त, काल और युग में सांसारिक बाधाओं को दूर करने वाली मानी गई है। लेकिन सावन माह, उसकी तिथियां या सोमवार पर शिव भक्ति जल्द मनोरथ सिद्धि की दृष्टि से बाकी माहों व तिथियों से तुलनात्मक रूप से श्रेष्ठ मानी गई है। इसके पीछे धर्मग्रंथों में बताई कुछ खास पौराणिक मान्यताएं हैं -

एक पौराणिक मान्यता के मुताबिक मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव कृपा प्राप्त की। जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हुए।

इसी तरह ही दूसरी मान्यता है – अमरनाथ गुफा में भगवान शंकर द्वारा माता पार्वती के सामने अमरत्व का रहस्य उजागर करना।

जिसके मुताबिक अमरनाथ की गुफा में जब भगवान शंकर अमरत्व की कथा सुनाने लगे तो इस दौरान माता पार्वती को कुछ समय के लिए नींद आ गई। किंतु उसी वक्त इस कहानी को वहां उपस्थित शुक यानि तोते ने सुना। जिससे वह शुक अमरत्व को प्राप्त हुआ। तब गोपनीयता भंग होने से भगवान शंकर के कोप से बचकर निकला यही शुक बाद में शुकदेव जी के रुप में जन्मा। जिन्होंने नैमिषारण्य क्षेत्र में यही अमर कथा भक्तों को सुनाई।

मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान शंकर ने ब्रह्मा और विष्णु के सामने सृष्टि चक्र की रक्षा और जगत कल्याण के लिए शाप दिया कि आने वाले युगों में इस अमर कथा को सुनने वाले अमर न होंगे। किंतु इस कथा को सुनकर हर भक्त पूर्व जन्म और वर्तमान जन्म में किए पाप और दोषों से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त होगें। विशेष रूप से सावन के माह में इस अमर कथा का पाठ या श्रवण जनम-मरण के बंधन मुक्त कर देगा।

ऐसे पौराणिक महत्व से ही श्रावण मास में शिव आराधना को शुभ और शीघ्र फलदायी  माना जाता है। जिसमें शिव पूजा, अभिषेक, शिव स्तुति, मंत्र जप, शिव कथा को पढऩा-सुनना सभी सांसारिक कलह, अशांति व संकटों से रक्षा करते हैं। श्रावण मास में शिव उपासना ग्रह दोष और पीड़ा का अंत करने वाली भी मानी गई है।

Saturday, July 16, 2011

Manohar kahaniya Vol 65

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Manohar_Kaniyan 68.

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Manohar Kahaniya Vol 53


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Thursday, July 14, 2011

गुरु पूर्णिमा 2011 (Guru Purnima 2011)

Maharshi Vyas Jayanti Mela (Guru Purnima Importance)

गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर: ।
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम: ।।

उपरोक्त पंक्तियां व्यक्ति के जीवन में गुरुओं के महत्व को पूर्णत: व्यक्त करती है. आषाढ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा कहलाती है(Poornima of Ashadh month, Shukla Paksha is called Guru Poornima or Vyas Poornima). प्राचीन काल में विद्धार्थी जब गुरुकुलों में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करते थे. उस समय से इस पर्व को इस दिन मनाने की परम्परा चली आ रही है. इस दिन अपने गुरुओं का पूजन किया जाता है. उन्हें विशेष सम्मान देते हुए, उनका आदर-सत्कार किया जाता है. वर्ष 2011 में यह पर्व 15 जुलाई के दिन मनाया जायेगा.

इस दिन व्यक्ति को प्रात:काल स्नानादि नित्य कर्मो से निवृ्त होकर ग्रुरु के पास जाना चाहिए. तथा उन्हें उच्चासन पर बैठाकर उनका सम्मान करना चाहिए. यथाशक्ति द्रव्य, फल, पुष्प, वस्त्र आदि दान करना चाहिए. इस प्रकार गुरु का पूजन करने से व्यक्ति को विद्धा की प्राप्ति होती है.
भारत के प्राचीन और पारम्परिक देश है. हमारे यहां पर देवों से पहले गुरुओं का पूजन करने की प्राचीन परम्परा है. गुरु पूर्णिमा के दिन प्रधान गुरुओं की प्रतिष्ठा की जाती है. गुरु को गुरु दक्षिणा देकर उनका आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है.

गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाता है. इस अवसर के विषय पर व्यासो नारायन यानि ईश्वर का ही एक रुप जगतगुरु है. ऎसे में गुरु पूजा को व्यास पूजा दिवस भी कहा जाता है. जीवन में ज्ञान व सदमार्ग पर चलने के लियिए गुरु का होना नितांत आवश्यक माना गया है.

गुरु पूर्णिमा पर्व उत्सव 
गुरु पूर्णिमा के दिन महर्षि व्यास का जन्म दिवस पूरे भारत में बडी धूमधाम से मनाया जाता है(The birthday of Guru Vyas is celebrated on Guru Poornima with great enthusiasm in all over India). इस दिन गुरुओं के आशिर्वाद प्राप्त करने, दर्शन -पूजन और सेवा करना अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. गुरु का आशिर्वाद लेने से शिष्य का आध्यात्मिक मार्ग प्रशस्त होता है.

गुरु और शिष्य का सम्बन्ध विषुद्ध रूप से आध्यात्मिक संबंध होता है, जिसमें दोनो की उम्र से कोई अन्तर नहीं पड़ता. गुरु और शिष्य का यह सम्बन्ध भक्ति और साधना की परिपक्वता और प्रौढ़ता पर आधारित होता है. शिष्य में सदा यह भावना काम करती है कि गुरु की कृपा से मेरा आध्यात्मिक विकास हो और कृपा के अक्षय भंडार गुरु में तो सदा यह कृपापूर्ण भाव रहता ही है कि मेरे इस शिष्य का आत्मिक कल्याण हो जाए.
गुरुपूजा का दिन गुरु और शिष्य के मध्य ऐसे आध्यात्मिक संबंध को वन्दन करने का दिन है. यदि जगत्‌ में सद्‌गुरु ने शिष्यों को उनके मनुष्य होने का महत्व तथा उन्हें अपने अन्तस्थ आत्मा को अनुभव कराने का उपाय न बतलाया होता तो अपनी अन्तरात्मा के दर्शन ही नहीं होते.

गुरु पूर्णिमा पर कृ्षि महत्व 
गुरु पूर्णिमा यानि व्यास पूर्णिमा के दिन प्रकृ्ति की वायु परीक्षा की जाती है. यह परीक्षा माँनसून के दौरान कृ्षि और बागवानी कार्यो में महत्वपूर्ण सिद्ध होती है. व्यास पूर्णिमा के दिन को वायु परिक्षण के लिये शुभ माना जाता है. इस दिन माँनसून परीक्षा कर आने वाली फसल का पूर्वानुमान लगाया जाता है. और अगले चार माहों में सूखा या बाढ आने की स्थिति का पूर्वानुमान लगाया जाता है. भारत प्राचीन काल से ही कृषि प्रधान देश है. ऎसे में इस दिन की महत्वता और भी बढ जाती है.

महर्षि व्यास जयन्ती मेला 
महर्षि व्यास ने महान ग्रन्थ महाभारत की रचना की थी(Maharshi Vyas wrote the great Scriptue "Mahabharata"). महाशास्त्र महाभारत के अलावा उन्होने अट्ठारह पुराण, श्री मदभागवत, ब्रह्मासूत्र, मीमांसा आदि जैसे महान ग्रन्थों की रचना कि थी. महर्षि व्यास ज्योतिष के पितामह ऋषि पराशर के पुत्र थे. "श्रीमदभागवत गीता" महाभारत का ही एक भाग है. इस दिन देश के कई भागों में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मेला लगता है.

गुरु पूर्णिमा महिमा
अपने गुणों व अपनी योग्यताके कारण गुरु को ईश्वर से भी उंचा स्थान दिया गया है(In India, teachers are considered even higher then God). ईश्वर के अनेक रुपों से ऊपर बी गुरु को ही माना गया है. गुरु को ब्रह्मा कहा गया है. गुरु अपने शिष्य को नया जन्म देता है. गुरु ही साक्षात महादेव है, क्योकि वे अपने शिष्यों के सभी दोषों को माफ करते है.

भारत में गुरुओं को न केवल आध्यात्मिक महत्व दिया गया है, बल्कि उनका महत्व धार्मिक और राजनैतिक विषयों में भी सदा से ही बना रहा है. यहां पर गुरुओं ने देश को संकट के समय में अपने मार्गदर्शन से नया रास्ता दिखाया है. गुरु केवल एक शिक्षक ही नहीं है, अपितु वह व्यक्ति को जीवन के हर संकट से बाहर निकलने का मार्ग बताने वाला मार्गदर्शक भी है.

गुरु व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश में ले जाने का कार्य करता है, सरल शब्दों में गुरु को ज्ञान का पुंज कहा जा सकता है.

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