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Saturday, September 24, 2011

नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त, (28 सितम्बर 2011)

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आश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात नवरात्री का पहला दिन। इसी दिन से ही आश्विनी नवरात्र का प्रारंभ होता हैं। जो अश्विन शुक्ल नवमी को समाप्त होते हैं, इन नौ दिनों देवि दुर्गा की विशेष आराधना करने का विधान हमारे शास्त्रो में बताया गया हैं। परंतु इस वर्ष तृतिया तिथी का क्षय होने के कारण नवरात्र नौ दिन की जगह आठ दिनो के होंगे। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH,
पारंपरिक पद्धति के अनुशास नवरात्रि के पहले दिन घट अर्थात कलश की स्थापना करने का विधान हैं। इस कलश में ज्वारे(अर्थात जौ और गेहूं ) बोया जाता है। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 

घट स्थापनकी शास्त्रोक्त विधि इस प्रकार हैं।  GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
घट स्थापना आश्विन प्रतिपदा के दिन कि जाती हैं।
घट स्थापना हेतु चित्रा नक्षत्र और वैधृतियोग को वर्जित माना गया हैं। (चित्रा नक्षत्र 28 सितंबर 2011 को दोपहर 01:37:33 बजे से लग रहा हैं।) घट स्थापना में चित्रा नक्षत्र को निषेध माना गया हैं। अतः घट स्थापना इससे पूर्व करना शुभ होता हैं।
विद्वनो के मत से इस वर्ष शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होने वाले शारदीय नवरात्र में सूर्योदयी नक्षत्र हस्त नक्षत्र रहेगा। हस्त नक्षत्र को पूजन हेतु उत्तम माना जाता हैं। हैं। इस लिये सूर्योदय से 6.12 बजे के बाद से ही कलश (घट) की स्थापना करना शुभदायक रहेगा।

यदि ऎसे योग बन रहे हो, तो घट स्थापना दोपहर में अभिजित मुहूर्त या अन्य शुभ मुहूर्त में करना उत्तम रहता हैं। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 

कलश स्थापना हेतु शुभ मुहूर्त
  • लाभ मुहूर्त सुबह 06:12 से 07:42 तक
  • अमृत मुहूर्त सुबह 07:42 से 09:12 तक
  • शुभ मुहूर्त सुबह 10:42 से 12:12 तक
  • के मुहूर्त घट स्थापना का श्रेष्ठ मुहूर्त रहेंगे। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 

घट स्थापना हेतु सर्वप्रथम स्नान इत्यादि के पश्चयात गाय के गोबर से पूजा स्थल का लेपन करना चाहिए। घट स्थापना हेतु शुद्ध मिट्टी से वेदी का निर्माण करना चाहिए, फिर उसमें जौ और गेहूं बोएं तथा उस पर अपनी इच्छा के अनुसार मिट्टी, तांबे, चांदी या सोने का कलश स्थापित करना चाहिए। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
यदि पूर्ण विधि-विधान से घट स्थापना करना हो तो पंचांग पूजन (अर्थात गणेश-अंबिका, वरुण, षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका, नवग्रह आदि देवों का पूजन) तथा पुण्याहवाचन (मंत्रोंच्चार) विद्वान ब्राह्मण द्वारा कराएं अथवा अमर्थता हो, तो स्वयं करें।
पश्चयात देवी की मूर्ति स्थापित करें तथा देवी प्रतिमाका षोडशोपचारपूर्वक पूजन करें। इसके बाद श्रीदुर्गासप्तशती का संपुट अथवा साधारण पाठ करना चाहिए। पाठ की पूर्णाहुति के दिन दशांश हवन अथवा दशांश पाठ करना चाहिए। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
घट स्थापना के साथ दीपक की स्थापना भी की जाती है। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं तथा उसका गंध, चावल, व पुष्प से पूजन करना चाहिए।
पूजन के समय इस मंत्र का जप करें- GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं ह्यन्धकारनिवारक।
इमां मया कृतां पूजां गृह्णंस्तेज: प्रवर्धय।।


कलश स्थापना की संपूर्ण-विधि गुरुत्व ज्योतिष मासिक पत्रिका के अक्टूबर-2011 के अंक में उप्लब्ध हैं।

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